दादी नानी की कहानियाँ/नैतिक मूल्यों की कहानियाँ/Dadi Nani ki kahaniyan/Naitik mulyon ki kahaniyan/Moral stories for Childerns
दादी नानी की कहानियाँ,नैतिक मूल्यों की कहानियाँ,Dadi Nani ki kahaniyan,Naitik mulyon ki kahaniyan,Moral stories for Childerns
एक वह समय था, जब बच्चे दादा-दादी के पास अक्सर जाया करते थे। खेल-खेल में वे जीवन के सुंदर मूल्यों को ग्रहण कर लिया करते थे। पर आज, जब व्यस्तताएं बढ़ती जा रही हैं, ऐसे समय में ये कहानियां ही हैं, जो हमें आने वाली पीढ़ी के और निकट ला सकती हैं। रात को सोने से पहले के वे पल, जब हम और हमारे लाडले साथ-साथ कहानियों का आनंद उठाते हैं, अमूल्य होते हैं। इन्हीं पलों में अनजाने ही हमारे बीच का प्यार और प्रगाढ़ होता जाता है और बच्चे सीख जाते हैं, जीवन का सबसे पहला मूल्य-संबंधों की मधुरता का मूल्य ।
यहाँ जो भी कहानी है उसमे एक छोटे बच्चे की आंखों
से देखने की कोशिश की गई है। चाहा है कि हर कहानी को एक बच्चे के कानों से सुना
जाए और एक बच्चे के मन से समझा जाए। कोशिश की गई है कि ऐसा कोई भी शब्द, जो उनके कोमल मन को चुभे, इन कहानियों के माध्यम से उनके कानों तक न पहुंचे।
यहां हर कहानी को एक सकारात्मक अंत मिला , जिससे कि बच्चों के
स्वप्नों को मिले एक सार्थक आरंभ मिल सके ।
बंदर का जिगर
एक नदी में एक मगरमच्छ रहता था।
नदी के किनारे पर केले का एक पेड था।
मगरमच्छ हमेशा केलों की ओर ललचाकर देखता था, लेकिन वह तो पेड पर चढ़कर केले तोड़ नहीं सकता था, इसलिए बेचारा कुछ कर नहीं पाता था।
एक बंदर अक्सर मगरमच्छ को केलों के लिए ललचाते
हुए देखता था।
एक दिन उसने केलों का एक गुच्छा तोड़कर मगरमच्छ
के लिए नीचे गिरा दिया।
मगरमच्छ ने पेट भरकर केले खाए। फिर जो केले बचे
उनको वह अपनी पत्नी के लिंए ले गया।
इस तरह बंदर और मगरमच्छ दोस्त बन गए।
मगरमच्छ की पत्नी ने जब इतने बड़े-बड़े और मीठे
केले खाए तो मगरमच्छ से बोली, “मैंने सुना है कि
बंदरों का जिगर बड़ा ही स्वादिष्ट होता है और तुम बता रहे थे कि वह बंदर सिर्फ
केले खाकर ही अपना पेट भरता है।
ज़रा सोचो ऐसे बंदर का जिगर कितना मीठा और
स्वादिष्ट होगा।
तुम उसे किसी तरह यहाँ ले आओ। फिर हम दोनों आराम
से बंदर का जिगर खाएँगे।'
मगरमच्छ को लगा कि अपने दोस्त के साथ ऐसा करना
ठीक नहीं है।
लेकिन उसकी पत्नी ने उसे इतना लालच दिया कि वह भी
ऐसा करने को तैयार हो गया।
अगले दिन सुबह वह बंदर के पास आया और बोला, “बंदर भैया, कल रात के केले खाने
से मेरी पत्नी को तबियत अचानक खराब हो गई।
उसने पहली बार केले खाए थे न, इसलिए।
भैया, तुम तो रोज़ ही केले
खाते हो, ज़रा चलकर देखो न, मेरी
पत्नी को क्या हुआ हे ?'
बंदर ने सोचा कि दोस्त की मदद करनी चाहिए।
इसलिए वह मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया।
इतनी खुरदुरी और चुभने वाली चीज़ पर वह पहली बार
बैठा था।
जैसे ही वह मगरमच्छ के घर पहुँचा, उसने देखा कि मगरमच्छ की पत्नी तो बिल्कुल
ठीक-ठाक है।
उसे अंदाज़ा लग गया कि ज़रूर कुछ गड़बड़ है।
वह सम्हलकर बैठा रहा।
मगरमच्छ की पत्नी ने जैसे ही बंदर को आते हुए
देखा, वह ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी।
वह बंदर से बोली, 'मूर्ख
बंदर, अब तू नहीं बचेगा।
हम तेरा जिगर खाएँगे।
हा-हा-हा... '
बंदर को अब पूरी बात समझ में आई।
लेकिन वह कुछ कम समझदार नहीं था।
तुरंत बोला, 'भाभीजी, अगर ऐसी बात थी तो आप लोगों ने मुझे पहले बोला
होता।
मेरा जिगर मेरे लिए इतना कीमती है कि जब भी में
कहीं बाहर जाता हूँ तो उसे पेड की ऊँची डाल पर छिपाकर रख देता हूँ।
जिगर को लेकर मैं कभी नहीं घूमता।
आप लोग मुझे वापस पेड़ तक छोड दो, मैं जिगर लेकर अभी वापस आता हूँ।'
मूर्ख बंदर नहीं, मगरमच्छ
था।
बंदर को पीठ पर बैठाकर वह नदी के किनारे तक आया।
बंदर किनारे तक पहुँचते ही कूदकर पेड् की तरफ
दौड़ा।
मगरमच्छ उसका इंतज़ार करता हुआ किनारे पर ही लेया
रहा।
कहते हैं कि मगरमच्छ अभी तक बंदर का इंतज़ार कर
रहा हे।
इसीलिए वह नदी के किनारे पर घंटों तक, मुँह खोलकर पड़ा रहता है।
गढ़ा हुआ खज़ाना
एक किसान अपने खेत में काम कर रहा था।
तभी उसने एक बौने को एक जगह पर मिट्टी खोदते हुए
देखा।
उसने बौने से पूछा, “यहाँ
मिट्टी क्यों खोद रहे हो ?
बौना बहुत ही चालाक था।
उसने वहाँ एक घडे में कुछ पत्थर भरकर दबा दिए थे।
सबसे ऊपर उसने सोने का एक सिक्का रख दिया था।
यह सोने का सिक्का उसने किसान को दिखाया और बोला, “यहाँ खज़ाना दबा हुआ है।
ये देखो, अभी-अभी मुझे सोने
का यह सिक्का मिला हे।'
“यह खेत मेरा है, इसलिए खज़ाना भी मेरा ही हुआ न!” किसान ने अधिकार जताते हुए कहा।
“लेकिन ख़ज़ाना
ढूँढ़ा तो मैंने है।
अगर तुम ये खज़ाना लेना चाहते हो तो तुम्हें मेरी
एक शर्त माननी होगी।' बौना बोला।
“क्या शर्त है ?” किसान ने पूछा।
तब बौना बोला, ' अगले दो
वर्षों तक अपने खेतों में तुम जो कुछ भी बोओगे, उसका आधा हिस्सा
मेरा होगा।
अर्थात् जो फसल उगेगी, उसका आधा हिस्सा तुम्हारा और आधा हिस्सा मेरा।'
किसान ने कहा, 'ठीक है, मुझे मंजूर है।'
यह बात सुनकर बौना मन-ही-मन ख़ुश हो गया।
उसको हँसते देखकर किसान को थोड़ा संदेह हुआ।
वह तुरंत समझ गया कि कुछ गड्बड़ है।
उसने बौने से कहा, 'सुनो, मेरी बात पूरी तो होने दो।
अगले दो वर्षों तक मैं जो कुछ भी उगाऊँगा उसको हम
दो भागों में बाँटेंगे।
ज़मीन के ऊपर जो उगेगा वह सब तुम्हारा और ज़मीन
के नीचे जो कुछ उगेगा, वह मेरा, बोलो ठीक है ?'
बौने ने सोचा कि यह तो और भी ज़्यादा फायदे वाली
बात है।
खेत में गेहूँ, चावल, जौ, मक्का, जो कुछ भी उगेगा, ज़मीन
के ऊपर उगेगा, वह सब मेरा होगा और नीचे की जडें किसान की होंगी।
वह मन में सोच रहा था-'कैसा मूर्ख किसान है!'
लेकिन किसान मूर्ख नहीं था।
उसने अगलें दो वर्षों तक खेत में सिर्फ गाजर और
आलू बोए।
बेचारे बौने को दो वर्ष तक केवल ज़मीन के ऊपर के
पत्ते ही मिले।
क्योंकि गाजर और आलू सब ज़मीन के नीचे ।
उगते हैं और ज़मीन के नीचे का हिस्सा तो किसान का
था ना!
दो वर्षों बाद ख़ज़ाने को निकालने का समय आया।
बौने ने सोचा कि जब किसान को ख़ज़ाने को जगह
पत्थरों वाला घड़ा मिलेगा तो उसे अपने किए की सज़ा मिल जाएगी।
लेकिन भगवान भी बुद्धिमान व्यक्ति का साथ देते
हैं।
जब वह जगह खोदी गई तो वहाँ दो घड़े मिले।
एक तो वही जो बौने ने दबाया था, पत्थरों से भरा हुआ और दूसरा सचमुच सोने के सिक्कों
से भरा आ।
हि इस तरह किसान को धन भी मिला और धान्य भी।
और यह सब हुआ उसकी समझदारी की वजह से !
अंगूर खट्टे हैं
एक लोमडी को बहुत ज़ोर से भूख लगी थी।
वह खाने के लिए कुछ ढूँढ रही थी।
तभी उसने अंगूर का एक खेत देखा।
अंगूर की एक बेल बाहर तक फैली हुई थी।
उस पर मोटे-मोटे अंगूरों के गुच्छे लटके हुए थे।
लोमडी के मुँह में पानी आ गया।
वह उछलकर गुच्छे तक पहुँचने की कोशिश करने लगी।
लेकिन गुच्छे काफी ऊँचाई पर थे।
लोमडी ने फिर कोशिश की।
लेकिन अंगूर तक पहुँच ही नहीं पाई।
उसने अपने पंजों पर उचककर कोशिश कौ, कूदकर भी कोशिश की, लेकिन
कोई फायदा नहीं हुआ।
उसने अपनी पूरी शक्ति लगा दी। फिर भी अंगूरों तक
नहीं पहुँच पाई। आखिरकार उसे हार माननी पड़ी।
तब उसने अपने-आपको समझाया, 'कोई बात नहीं अगर मुझे अंगूर खाने को नहीं मिले।
शायद इससे भी अच्छी कोई चीज़ मुझे मिलने वाली है
खाने के लिए।
वैसे भी ये अंगूर तो अभी तक पके भी नहीं
हैं-खट्टे हैं... खट्टे!
राजा की बेटी
एक राजा की बेटी थी-मंदिरा।
राजकुमारी मंदिरा को सुख-सुविधाओं की इतनी आदत हो
गई थी कि वह उनके बिना रह ही नहीं पाती थी।
वह अपने पिता की बहुत लाडली थी।
जब वह बड़ी हुई तो उसके पिता उसके लिए एक अच्छा
वर ढूँढ़ने लगे।
एक दिन एक युवक राजा के पास आया।
उसने राजकुमारी का हाथ राजा से माँगा।
राजा ने बहुत देर तक उस युवक से बात की।
उसके बाद वह उस युवक से राजकुमारी का विवाह करने
के लिए तैयार हो गए।
लेकिन जब राजकुमारी को पता चला कि जिस युवक से
उसका विवाह होने वाला है,
वह कोई राजा या राजकुमार नहीं है तो उसने
विवाह करने से मना कर दिया।
लेकिन राजा भी आखिर उसके पिता थे।
अंत में राजा की आज्ञा उसे माननी ही पड़ी।
विवाह के बाद दूल्हा और दुल्हन एक गाड़ी में बैठे
और अपने घर में रहने चले गए। उनकी गाडी सुअरों के एक बाड़े के आगे रुकौ।
वहीं एक झोंपड़ी भी थी। युवक ने कहा, 'हमारा घर आ गया है, आओ अंदर
चलें।'
राजकुमारी को यह देखकर बेहद आश्चर्य हुआ कि उसके
पिता ने उसका विवाह एक सुअर पालनेवाले से कैसे कर दिया।
लेकिन वह अब कुछ भी नहीं कर सकती थी।
उसके पति ने उससे कहा, ' अब यही तुम्हारा घर हे।
कल से तुम मेरे काम में मेरी मदद करना।'
राजकुमारी को यह सोचकर भी घिन आती थी कि उसके
चारों ओर सुअर घूम रहे हैं।
जबकि उसका पति आराम से वहाँ रह रहा था।
धीरे-धीरे राजकुमारी को सुअरों के बीच रहने की
आदत पड़ने लगी। वह अपने पति की मदद भी करने लगी।
कुछ महीने बीत गए। अब तक राजकुमारी घर का सारा
काम अपने आप करना सीख गई थी।
बल्कि उसे यह सब करने में मज़ा आने लगा था।
एक दिन अचानक उसका पति उससे बिना कुछ कहे, कहीं चला गया।
काफी देर तक वह वापिस ही नहीं आया।
फिर वहाँ एक बग्घी आई।
देखने में यह किसी राजा की बग्घी लगती थी।
बग्घी के कोचवान ने राजकुमारी मंदिरा से कहा, ' आपको हमारे राजा साहब ने बुलाया है। आइए, मेरे साथ चलिए।' मंदिरा
अब कोई' राजकुमारी नहीं बल्कि एक साधारण सुअरवाली थी।
वह यह सोचकर डर रही थी कि राजा ने उसे क्यों
बुलाया है। शायद मेरे पति से कोई गूलती हो गई है।
' उसने सोचा। कोचवान
मंदिरा को एक राजमहल में ले आया।
यह उस राज्य के राजा का महल था।
उसे राजा के सामने बुलाया गया। उसे समझ नहीं आ
रहा था कि उससे क्या भूल हो गई है।
उसने हिम्मत करके राजा की ओर देखा। वह पूछने ही
वाली थी कि उसे यहाँ क्यों बुलाया गया है।
तभी उसे लगा कि उसने राजा को पहले कहीं देखा है।
ध्यान से देखने पर उसे पता चला कि सामने
राजसिंहासन पर और कोई नहीं,
उसका पति था।
उसे इस तरह राजा के रूप 'में देखकर मंदिरा भी उसे तुरंत पहचान नहीं पाई।
उसे सम्मान के साथ राजा के बराबर रखे हुए सिंहासन
पर बैठाया गया।
उसका पति वास्तव में उस राज्य का राजा था।
राजकुमारी मंदिरा अब पहले जैसी ज़िद्दी और घमंडी
नहीं रही थी। इसीलिए वह अब रानी बनने के लायक थी।
अब वह समझ गई थी कोई भी काम छोटा या गंदा नहीं
होता।
यदि आप चाहें तो हर परिस्थिति में खुश रह सकते
हें।
बर्फ का गोला
बर्फ के गोले का नाम सुनकर मुँह में पानी आ जाता
है न!
चलो तुम्हें बर्फ के गोले की एक कहानी सुनाती
हूँ।
एक ग्रीब लड़की सपना अपनी माँ के साथ एक गाँव में
रहती थी।
उनके पास ठीक से खाना खाने के लिए पैसे भी नहीं
थे।
वे रात-दिन मेहनत करके किसी तरह अपना जीवन बिता
रही थीं।
उनके घर के सामने से रोज़ एक बर्फ के गोलेवाला
गुज़रता था।
सपना रोज़ उसको देखती थी और सोचती थी कि काश, उसके पास भी पैसे होते तो वह भी बर्फ का गोला खा
सकती थी।
जब आस-पास के बच्चे बर्फ का गोला लेकर चूसते थे
तो उसके मुँह में भी पानी आ जाता था।
लेकिन सपना कभी भी निराश नहीं होती थी।
उसे विश्वास था कि एक दिन वह भी बर्फ का गोला
ज़रूर खाएगी।
बर्फ के गोले वाला सपना को देखा करता था।
एक दिन उसने सपना को अपने पास बुलाया और बोला, 'बेटी तुमको गोला बहुत अच्छा लगता है न!'
'जी हाँ, पर मेरे पास पैसे नहीं हैं। ख़रीदने के लिए।
सपना ने कहा, 'सपना
कोई बात नहीं ये लो गोला,
इस गोले को इस डिब्बे में रख लो।
' गोलेवाले ने सपना को
एक डिब्बा और एक गोला देते हुए कहा।
“लेकिन मैं गोला खाना
चाहती हूँ।' सपना बोली।
तब गोलेवाले ने बताया, 'यह एक जादुई डिब्बा हे। में तुम्हें समझाता हँ।
ऐसा कहकर उसने गोला उस डिब्बे में रख दिया। फिर बोला, 'शुरू करो।'
सपना ने देखा कि डिब्बा अपने आप बर्फ से भरना
शुरू हो गया।
जब डिब्बा भरने वाला था तो गोलेवाले ने कहा, 'रुक जाओ।' और बर्फ बननी बंद हो
गई।
तब उसने अंदर से .थोड़ी-सी बर्फ निकाली और एक
गोला बनाकर सपना को दिया।
सपना ने गोलेवाले को धन्यवाद दिया।
उसने जादुई डिब्बा उठाया और गोला चूसती हुई अपनी
माँ के पास पहुँची।
उसने अपनी माँ को पूरी बात बताई।
उसके बाद जब भी उन दोनों का मन करता था, वे बर्फ बनाती थीं और जी भरकर गोला खाती थीं।
एक बार सपना और उसकी माँ घूमने गए।
डिब्बा उनके साथ ही था।
वे दोनों एक बडे-से मैदान में जाकर बैठ गईं और
खेलने लगीं। सपना के साथ उसकी कुछ सहेलियाँ भी थीं।
उसकी माँ ने सोचा कि सबको बर्फ के गोले खिलाऊंगी
तो सब बच्चे खुश हो जाएँगे।
इसीलिए उन्होंने डिब्बे से कहा-' शुरू करो'।
इतना कहते ही डिब्बे में बर्फ भरनी शुरू हो गई।
सपना अपनी सहेलियों के साथ खेल रही थी।
खेलते-खेलते वह काफी दूर निकल आई थी।
जब उसकी माँ ने देखा कि सपना वहाँ नहीं है तो
उन्हें चिंता हुई। वे सपना को ढूँढ़ने निकल पड़ीं।
सपना और उसकी सहेलियाँ दौड़ते-दौड़ते अपने गाँव
तक पहुँच गई थीं।
सपना की माँ भी पीछे-पीछे घर पहुँच गईं।
उन्होंने सपना को समझाया कि इस तरह बिना बताए
बहुत दूर तक नहीं जाना चाहिए।
सपना ने उनसे माफी माँगी और फिर उसकी सहेलियाँ
अपने-अपने घर चली गई।
इस सारी गड़बड़ में वे लोग बर्फ के डिब्बे को
बिल्कुल भूल गए।
उधर डिब्बा बर्फ बनाता जा रहा था। धीरे-धीरे वहाँ
चारों ओर बर्फ ही-बर्फ फैलने लगी।
रात हो गई थी, इसीलिए सपना और उसकी
माँ सो गए।
आधी रात को अचानक गाँव के सभी लोगों को ठंड लगने
लगी।
वे सब हैरान थे कि पूरे गाँव में अचानक ठंड कैसे
हो गई है।
उन्होंने अपने आपको ढकने के लिए मोटी-मोटी चादरें
लीं और अपने घरों से बाहर निकल आए।
सब गाँव वाले, सपना और उसकी माँ
बाहर निकले तो उनको कुछ दूरी पर बर्फ का एक ऊँचा पहाड़ दिखाई दिया।
बर्फ का पहाड़ और उनके गाँव में ?
उनको समझ ही नहीं आ रहा था।
तभी सपना चिल्लाई, 'मेरा
बर्फ का डिब्बा!' वह मैदान की ओर दौड़ पड़ी।
वहाँ जाकर सब लोगों ने देखा कि बर्फ का पहाड़
धीरे-धीरे और ऊँचा होता जा रहा था।
यदि बर्फ थोडी और बढ़ जाती तो शायद नीचे गिरने
लगती और उनके घर बर्फ के नीचे दब जाते।
सपना का बर्फ का डिब्बा भी बर्फ के अंदर कहीं दब
गया था।
सपना ने ज़ोर से चिललाकर कहा, 'रुक जाओ' और अचानक पहाड़ ' ऊँचा होना बंद हो गया।
वह पहाड़ आज भी वहीं खड़ा है।
सपना का गाँव एक खूबसूरत "पहाड़ी गाँव बन
गया।
सपना शायद आज भी अपनी माँ के साथ वहाँ रहती हो।
दूर-दूर से पर्यटक वहाँ घूमने आते हैं।
यदि तुम्हें कभी मौका मिले तो वहाँ ज़रूर जाना, सपना से मिलने।
0 टिप्पणियाँ