अक्षय ऊर्जा : सम्भावनाएँ और नीतियाँ निबंध – Akshay Oorja : Sambhaavanaen Aur Neetiyaan Nibandh

अक्षय ऊर्जा : सम्भावनाएँ और नीतियाँ निबंध – Essay On Renewable Sources Of Energy In Hindi


अक्षय ऊर्जा : सम्भावनाएँ और नीतियाँ निबंध – Akshay Oorja : Sambhaavanaen Aur Neetiyaan Nibandh


प्रस्तावना


पेट्रोल, डीजल, कोयला, गैस आदि की दिनोदिन घटती मात्रा ने हमें यह सोचने पर विवश कर दिया है कि हमें अपनी कल की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए ऐसे संसाधनों को खोजना होगा, जो कभी समाप्त न हों और हमारा जीवन सुचारु रूप से बिना किसी ऊर्जा संकट के चलता रहे। ऊर्जा के कभी न समाप्त होनेवाले संसाधनों को ही हम अक्षय ऊर्जा के स्रोत के रूप में जानते हैं।

अक्षय ऊर्जा के स्त्रोत


मानव एक विकासशील प्राणी है। उसने ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों की खोज की, जो आधुनिक जीवन शैली का अभिन्न अंग बन गए हैं। सबसे पहले मानव ने ऊर्जा के परम्परागत साधनोंकोयला, गैस, पेट्रोलियम आदि का प्रयोग किया, जो सीमित मात्रा में होने के साथसाथ पर्यावरण के लिए हानिकारक भी हैं।

अक्षय ऊर्जा के स्रोत न केवल ऊर्जा के संकट मिटाने में सक्षम हैं, पर्यावरण के अनुकूल भी हैं। भारत में अक्षय ऊर्जा के अनेक स्रोत उपलब्ध हैं; जैसेसौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, बायोमास एवं जैव ईंधन आदि। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

(क) सौर ऊर्जाभारत में सौर ऊर्जा की काफी सम्भावनाएँ हैं; क्योंकि देश के अधिकतर भागों में वर्ष में 250–300 दिन सूर्य अपनी किरणें बिखेरता है। सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए फोटोवोल्टेइक सेल प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। फोटोवोल्टेइक सेल सूर्य से प्राप्त होनेवाली किरणों को ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है। हमारे देश में सौर ऊर्जा के रूप में प्रतिवर्ष लगभग 5 हजार खरब यूनिट बिजली बनाने की सम्भावना मौजूद है, जिसके लिए पर्याप्त तीव्रगति से कार्य किए जाने की आवश्यकता है। भारत में विगत 25–30 वर्षों से सौर ऊर्जा पर कार्य हो रहा है।

वर्ष 2010 ई० में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन की शुरूआत की थी, जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक सौर ऊर्जा के माध्यम से देश को ऊर्जा के संकट से मुक्ति दिलाना है। आज देश के टेलीकॉम टॉवर प्रतिवर्ष 5 हजार करोड़ लीटर डीजल का प्रयोग कर रहे हैं, सौर ऊर्जा के प्रयोग द्वारा इस डीजल को बचाया जा सकता है।

सौर ऊर्जा अभी महँगी है, इसलिए इसकी उपयोगिता का ज्ञान होते हुए भी लोग इसका प्रयोग करने से बचते हैं। अब सोलर कूकर, सोलर बैटरी चालित वाहन और मोबाइल फोन भी प्रयोग में लाए जा रहे हैं। लोग धीरेधीरे इसकी महत्ता समझ रहे हैं। कर्नाटक के लगभग एक हजार गाँवों में सौर ऊर्जा के प्रयोग का अभियान चल रहा है। आनेवाले समय में सौर ऊर्जा निश्चित ही भारत को प्रगति के मार्ग पर ले जाने में सहायक होगी।

(ख) पवन ऊर्जापवन या वायु ऊर्जा अक्षय ऊर्जा का दूसरा महत्त्वपूर्ण स्रोत है। प्राचीन काल में पवन ऊर्जा का प्रयोग नाव चलाने में किया जाता था। लगभग 2 हजार वर्ष पूर्व सिंचाई और अनाज कूटने आदि में पवन ऊर्जा के प्रयोग का प्रणाम मिलता है। चीन, अफगानिस्तान, पर्शिया, डेनमार्क, कैलिफोर्निया में पवन ऊर्जा का उपयोग बिजली बनाने में किया जा रहा है।

भारत में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान आदि प्रदेशों में पवन ऊर्जा के विद्युत् उत्पादन का कार्य चल रहा है। भारत में पवन ऊर्जा की काफी सम्भावनाएँ हैं। इस समय भारत में पवन ऊर्जा का नवीन और ऊर्जा मन्त्रालय के अनुसार भारत में वायु द्वारा 48,500 मेगावॉट विद्युत् उत्पादन की क्षमता है, अभी तक 12,800 मेगावॉट की क्षमता ही प्राप्त की जा सकी है।

पिछले दो दशकों में विद्युत् उत्पादक पवनचक्कियों (टरबाइनों) की रूपरेखा, स्थल का चयन, स्थापना, कार्यकलाप और रखरखाव में तकनीकी रूप से भारी प्रगति हुई है और विद्युत् उत्पादन की लागत कम हुई है। पवन ऊर्जा द्वारा पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता; क्योंकि इसमें अपशिष्ट का उत्पादन नहीं के बराबर होता है विकिरण की समस्या भी नहीं होती है। आनेवाले समय में पवन ऊर्जा के सशक्त माध्यम बनने की पूरी सम्भावनाएँ हैं।

(ग) जल ऊर्जाजल अक्षय ऊर्जा के प्रमुख स्रोतों में से एक है। इसमें नदियों पर बाँध बनाकर उनके जल से टरबाइनों द्वारा विद्युत् उत्पादन किया जाता है। भारत में बाँध बनाकर जल विद्युत् का उत्पादन दीर्घकाल से हो रहा है। इसके अलावा समुद्र में उत्पन्न होनेवाले ज्वारभाटा की लहरों से भी विद्युत् उत्पादन किया जा सकता है। भारत की सीमाएँ तीनतीन ओर से समुद्रों से घिरी हैं; अतः अक्षय ऊर्जा स्त्रोत का प्रयोग बड़े पैमाने पर कर सकता है।

(घ) भूतापीय ऊर्जायह पृथ्वी से प्राप्त होनेवाली ऊर्जा है। भूतापीय ऊर्जा का जन्म पृथ्वी की गहराई में गर्म, पिघली चट्टानों से होता है। इस स्रोत से ऐसे स्थानों पर ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पृथ्वी के गर्म क्षेत्र तक एक सुरंग खोदी जाती है, जिनके द्वारा पानी को वहाँ पहुँचाकर उसकी भाप बनाकर टरबाइन चलाकर बिजली बनाई जाती है।

भारत में लगभग 113 संकेत मिले हैं, जिनसे लगभग 10 हजार मेगावॉट बिजली उत्पादन होने की सम्भावना है। भूतापीय ऊर्जा से विद्युत् उत्पादन लागत जल ऊर्जा से उत्पन्न विद्युत् जितनी ही है। भारत को भूतापीय ऊर्जा को प्रयोग में लाने के लिए बड़ी मात्रा में आवश्यक संसाधन जुटाने पड़ेंगे, तभी इस ऊर्जा का लाभ उठाया जा सकेगा।

(ङ) बायोमास एवं जैव ईंधनकृषि एवं वानिकी अवशेषों (बायोमास / जैव पदार्थों) का प्रयोग भी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है। भारत की लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या जैव पदार्थों का प्रयोग खाना बनाने के लिए ईंधन के रूप में करती है। लकड़ी, गोबर और खरपतवार प्रमुख जैवपदार्थ हैं, जिनसे बायोगैस उत्पन्न की जाती है। गन्ने, महुए, आलू, चावल, जौ, मकई और चुकन्दर जैसे शर्करायुक्त पदार्थों से एथेनॉल बनाया जाता है।

इसे पेट्रोल में मिलाकर ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। भारत सरकार इसका 10 प्रतिशत तक पेट्रोल में मिश्रण करना चाहती है, जिसके लिए प्रतिवर्ष 266 करोड़ लीटर एथेनॉल की जरूरत होगी, किन्तु एथेनॉल बनाने वाली चीनी मिलों ने अभी 140 करोड़ लीटर एथेनॉल की आपूर्ति की पेशकश ही सरकार से की है।

इसके अतिरिक्त कृषि से निकलनेवाले व्यर्थ पदार्थों; जैसे खाली भुट्टे, फसलों के डंठल, भूसी आदि और शहरों एवं उद्योगों के ठोस कचरे से भी बिजली बनाई जा सकती है। भारतवर्ष में उनसे लगभग 23,700 मेगावॉट बिजली प्रतिवर्ष बन सकती है, परन्तु अभी इनसे 2,500 मेगावॉट बिजली का ही उत्पादन हो रहा है।

(च) परमाणु ऊर्जाभारत के डॉ. होमी भाभा को भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास का जनक माना जाता है। भारत में पाँच परमाणु ऊर्जा केन्द्रों पर 10 परमाणु रिएक्टर हैं, जो देश की कुल दो प्रतिशत बिजली का उत्पादन करते हैं। यद्यपि परमाणु ऊर्जा पर्यावरण के लिए घातक नहीं है, लेकिन इससे सम्बन्धित कोई भी दुर्घटना अवश्य ही मानवजीवन के लिए घातक सिद्ध होती है।

इसका सबसे अधिक खतरा उत्पादन के पश्चात् निकलनेवाला रेडियोधर्मी अपशिष्ट कचरा है, जिसे समाप्त करना दुष्कर होता जा रहा है; अत: यह अक्षय ऊर्जा का स्रोत होते हुए भी इसका प्रयोग दीर्घकाल तक नहीं किया जा सकता है। अक्षय ऊर्जा और हमारा राष्ट्रअक्षय ऊर्जा वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए श्रेष्ठ साधन है; क्योंकि इससे हमारा पर्यावरण स्वच्छता के साथ बड़ी मात्रा में ऊर्जा भी प्राप्त होती है।

इसी कारण विभिन्न देशों में अपनेअपने अक्षय ऊर्जा स्रोत बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा दिखाई देने लगी है। वैश्विक रुझानों को देखते हुए भारत अक्षय की प्रतिस्पर्धा का सक्रिय भागीदार है। वह निरन्तर अक्षय ऊर्जा स्रोतों की अपनी श्रेणियाँ विस्तृत करने के प्रयास में जुटा है। भारत ने 2022 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता 74 गीगावॉट तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसमें 2020 तक सौर ऊर्जा क्षमता बढ़ाकर 20 गीगावॉट करने और बिजली की कुल खपत का 15 प्रतिशत हिस्सा अक्षय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

वर्तमान में भारत की संस्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता लगभग 30 गीगावॉट है और भारत इस क्षेत्र में अग्रणी है। भारत की अक्षय ऊर्जा विकास योजना में घरेलू ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करना भी शामिल है। इस योजना से जहाँ क्षेत्रीय विकास होगा, वहीं रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होंगे। पर्यावरण सुरक्षा भी इसके माध्यम से हो सकेगा और ग्लोबल वार्मिंग के अन्तर्गत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के अन्तरराष्ट्रीय दबाव से भी हम मुक्त हो सकेंगे।

उपसंहार
अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा जो योजनाएँ चलाई जा रही हैं; उनसे यह आशा बँधती है कि हम निकट भविष्य में अपनी ऊर्जाप्राप्ति और पर्यावरणसुरक्षा की समस्या का समाधान खोजने में अवश्य ही सफल होंगे। हम इस क्षेत्र में अन्य विकासशील देशों को सहयोग करके न केवल विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकेंगे, वरन् विश्वसमुदाय के मध्य स्वयं को एक मजबूत राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में भी सफल होंगे।