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नरेन्द्र कोहली का साहित्यिक परिचय |
नरेन्द्र कोहली का जन्म 6 जनवरी 1940, सियालकोट
(अब पाकिस्तान) में हुआ । दिल्ली विश्वविद्यालय से 1963 में एम.ए.
और 1970 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की । डॉ. कोहली ने
हिंदी साहित्य की सभी विधाओं में लेखन किया था। डीयू के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में
वह हिंदी के प्राध्यापक भी थे लेकिन लेखन को प्राथमिकता देने के लिए उन्होंने
नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। माना जाता है कि साहित्य में ‘महाकाव्यात्मक उपन्यास’ की विधा को प्रारंभ नरेंद्र कोहली ने किया था।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए उनके माध्यम से आधुनिक
समाज की समस्याओं एवं उनके समाधान को समाज के समक्ष प्रस्तुत करना उनकी विशेषताओं
में से एक था। प्रसिद्ध आलोचक डॉ.
नगेन्द्र के निर्देशन में ‘हिन्दी उपन्यास : सृजन एवं सिद्धांत’ विषय पर उनका शोध था।
बचपन से ही लेखन की ओर रुझान और प्रकाशन किंतु नियमित
रूप से 1960 से लेखन । 1995 में सेवानिवृत्त
होने के बाद पूर्ण कालिक स्वतंत्र लेखन। कहानी¸ उपन्यास¸ नाटक और व्यंग्य सभी विधाओं में अभी तक उनकी लगभग
सौ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनकी जैसी प्रयोगशीलता¸ विविधता और प्रखरता कहीं और देखने को नहीं मिलती।
उन्होंने इतिहास और पुराण की कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखा है और बेहतरीन
रचनाएँ लिखी हैं। महाभारत की कथा को अपने उपन्यास "महासमर" में समाहित किया
है । सन 1988 में महासमर का प्रथम संस्करण 'बंधन' वाणी प्रकाशन द्वारा
प्रकाशित हुआ था । महासमर प्रकाशन के दो दशक पूरे होने पर इसका भव्य संस्करण नौ खण्डों
में प्रकाशित किया है । प्रत्येक भाग महाभारत की घटनाओं की समुचित व्याख्या करता है।
इससे पहले महासमर आठ खण्डों में (बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध) था, इसके बाद वर्ष 2010 में भव्य
संस्करण के अवसर पर महासमर आनुषंगिक (खंड-नौ) प्रकाशित हुआ । महासमर भव्य संस्करण के
अंतर्गत ' नरेंद्र कोहली के उपन्यास (बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध,आनुषंगिक) प्रकाशित हैं
। महासमर में 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' के बारे में वर्णन है, लेकिन स्त्री के त्याग को हमारा पुरुष समाज भूल जाता
है।जरूरत है पौराणिक कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समझा जाये। इसी महासमर के
अंतर्गततीन उपन्यास 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' हैं जो स्त्री वैमर्शिक दृष्टिकोण से लिखे गये हैं
नरेन्द्र कोहली का साहित्यिक परिचय
नरेन्द्र कोहली उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार तथा व्यंग्यकार
हैं। ये सब होते हुए भी वे अपने समकालीन साहित्यकारों से पर्याप्त भिन्न हैं। साहित्य
की समृद्धि तथा समाज की प्रगति में उनका योगदान प्रत्यक्ष है। उन्होंने प्रख्यात् कथाएं
लिखी हैं; किंतु वे सर्वथा मौलिक हैं। वे आधुनिक हैं; किंतु पश्चिम का अनुकरण नहीं करते। भारतीयता की जड़ों
तक पहुंचते हैं, किंतु पुरातनपंथी नहीं हैं। 1960 ई. में नरेन्द्र कोहली की कहानियां प्रकाशित होनी आरंभ
हुई थीं, जिनमें वे साधारण पारिवारिक चित्रों और घटनाओं के
माध्यम से समाज की विडंबनाओं को रेखांकित कर रहे थे। 1965 ई.के आस-पास वे व्यंग्य लिखने लगे थे। उनकी भाषा वक्र
हो गई थी, और देश तथा राजनीति की विडंबनाएं सामने आने लगी थीं।
उन दिनों लिखी गई अपनी रचनाओं में उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन की अमानवीयता, क्रूरता तथा तर्कशून्यता के दर्शन कराए। हिंदी का
सारा व्यंग्य साहित्य इस बात का साक्षी है कि अपनी पीढ़ी में उनकी सी प्रयोगशीलता, विविधता तथा प्रखरता कहीं और नहीं है। नरेन्द्र कोहली
ने रामकथा से सामग्री लेकर चार खंडों में 1800 पृष्ठों
का एक बृहदाकार उपन्यास लिखा। कदाचित् संपूर्ण रामकथा को लेकर, किसी भी भाषा में लिखा गया, यह प्रथम उपन्यास है। उपन्यास है, इसलिए समकालीन, प्रगतिशील, आधुनिक तथा तर्काश्रित है। इसकी आधारभूत सामग्री भारत
की सांस्कृतिक परंपरा से ली गई, इसलिए इसमें जीवन के
उदात्त मूल्यों का चित्रण है, मनुष्य की महानता तथा
जीवन की अबाधता का प्रतिपादन है। हिंदी का पाठक जैसे चौंक कर,किसी गहरी नीन्द से जाग उठा। वह अपने संस्कारों और
बौद्धिकता के द्वंद्व से मुक्त हुआ। उसे अपने उद्दंड प्रश्नों के उत्तर मिले, शंकाओं का समाधान हुआ।
दीक्षा' उपन्यास का प्रकाशन
आधुनिक युग में नरेन्द्र कोहली ने साहित्य में आस्थावादी
मूल्यों को स्वर दिया. सन् 1975 में उनके रामकथा पर आधारित उपन्यास 'दीक्षा' के प्रकाशन से हिंदी
साहित्य में 'सांस्कृतिक पुनर्जागरण का युग' प्रारंभ हुआ जिसे हिन्दी साहित्य में 'नरेन्द्र कोहली युग' का नाम देने का प्रस्ताव भी जोर पकड़ता जा रहा है।
तात्कालिक अन्धकार, निराशा, भ्रष्टाचार एवं मूल्यहीनता
के युग में नरेन्द्र कोहली ने ऐसा कालजयी पात्र चुना जो भारतीय मनीषा के रोम-रोम में
स्पंदित था। महाकाव्य का ज़माना बीत चुका था, साहित्य के 'कथा' तत्त्व का संवाहक अब
पद्य नहीं, गद्य बन चुका था। अत्याधिक रूढ़ हो चुकी रामकथा को
युवा कोहली ने अपनी कालजयी प्रतिभा के बल पर जिस प्रकार उपन्यास के रूप में अवतरित
किया, वह तो अब हिन्दी साहित्य के इतिहास का एक स्वर्णिम
पृष्ठ बन चुका है। युगों युगों के अन्धकार को चीरकर उन्होंने भगवान राम की कथा को भक्तिकाल
की भावुकता से निकाल कर आधुनिक यथार्थ की जमीन पर खड़ा कर दिया. साहित्यिक एवम पाठक
वर्ग चमत्कृत ही नहीं, अभिभूत हो गया। किस प्रकार एक उपेक्षित और निर्वासित
राजकुमार अपने आत्मबल से शोषित, पीड़ित एवं त्रस्त जनता
में नए प्राण फूँक देता है,
'अभ्युदय' में यह देखना
किसी चमत्कार से कम नहीं था। युग-युगांतर से रूढ़ हो चुकी रामकथा जब आधुनिक पाठक के
रुचि-संस्कार के अनुसार बिलकुल नए कलेवर में ढलकर जब सामने आयी, तो यह देखकर मन रीझे बिना नहीं रहता कि उसमें रामकथा
की गरिमा एवं रामायण के जीवन-मूल्यों का लेखक ने सम्यक् निर्वाह किया है।
डॉ. नरेंद्र कोहली की रचनाएं
उपन्यास:
1. पुनरारंभ- 1972 /1994 (वाणी प्रकाशन)
2. आतंक - 1972 (राजपाल एंड संस)
3. आश्रितों का विद्रोह-1973 (नेशनल पब्लिशिंग हाउस)
4. साथ सहा गया दुख -1974 (राजपाल एंड संस)
5. मेरा अपना संसार-1975 ( पराग प्रकाशन )
6. दीक्षा - 1975 ( पराग प्रकाशन )
7. अवसर -1976 ( पराग प्रकाशन )
8. जंगल की कहानी -1977 (नेशनल पब्लिशिंग हाउस )
9. संघर्ष की ओर - 1978 ( पराग प्रकाशन )
10. युद्ध ( दो भाग)-1979 (पराग प्रकाशन )
11. अभिज्ञान - 1981 ( राजपाल एंड संस )
12. आत्मदान- 1983 ( लोकभारती प्रकाशन )
13. प्रीतिकथा-1986 ( किताबघर )
14. बंधन ( महासमर-1 ) -1988 ( वाणी प्रकाशन )
15. अभ्युदय ( दो खंड ) -1989 ( अभिरुचि प्रकाशन )
16. अधिकार ( महासमर-2 ) - 1990 ( वाणी प्रकाशन )
17. कर्म (महासमर-3) -1991 ( वाणी प्रकाशन )
18. निर्माण ( तोड़ो कारा तोड़ो-1) -1992 (किताबघर)
19. साधना (तोड़ो कारा तोड़ो-2)-1993 (किताबघर )
20. धर्म (महासमर-4 ) -1993 ( वाणी प्रकाशन )
21. क्षमा करना जीजी - 1995 (भारतीय ज्ञानपीठ)
22. अंतराल ( महासमर-5 ) -1995 ( वाणी प्रकाशन )
23. प्रच्छन्न ( महासमर-6 ) -1997 (वाणी प्रकाशन )
24. प्रत्यक्ष ( महासमर -7 )-1998 ( वाणी प्रकाशन )
इसके अतिरिक्त वृहद् व्यंग साहित्य, नाटक और कहानियों के साथ साथ नरेन्द्र कोहली ने
गंभीर एवं उत्कृष्ट निबंध,
यात्रा विवरण एवं मार्मिक आलोचनाएं भी
लिखी हैं। संक्षेप में कहा जाय तो उनका अवदान गद्य की हर विधा में देखा जा सकता है, एवं वह प्रायः सभी अन्य साहित्यकारों से उनकी विशिष्ट
विधा में भी श्रेष्ठ हैं। उनके कृतित्व का आधा भी किसी अन्य साहित्यकार को
युग-प्रवर्तक साहित्यकार घोषित करने के लिए पर्याप्त है। नरेन्द्र कोहली ने तो उन
कथाओं को अपना माध्यम बनाया है जो अपने विस्तार एवं वैविध्य के लिए विश्व-विख्यात
हैं : रामकथा एवं महाभारत कथा। 'यन्नभारते - तन्नभारते' को चरितार्थ करते हुए उनके महोपन्यास 'महासमर' मात्र में वर्णित
पात्रों, घटनाओं, मनोभावों आदि की
संख्या एवं वैविध्य देखें तो वह भी पर्याप्त ठहरेगा. वर्णन कला, चरित्र-चित्रण, मनोजगत
का वर्णन इत्यादि देखें भी कोहली प्रेमचंद से न सिर्फ आगे निकल जाते है, वरन संवेदनशीलता एवं गहराई भी उनमें अधिक है। नरेन्द्र
कोहली ने प्रायः सौ से भी अधिक उच्च कोटि के ग्रंथों का सृजन किया है।
नरेंद्र कोहली को प्राप्त सम्मान एवं पुरस्कार
1. राज्य
साहित्य पुरस्कार 1975-76
( साथ सहा गया दुख ) शिक्षा विभाग, उत्तरप्रदेश शासन, लखनऊ।
2. उत्तरप्रदेश
हिंदी संस्थान पुरस्कार 1977-78
( मेरा अपना संसार ) उत्तरप्रदेश हिंदी
संस्थान, लखनऊ।
3. इलाहाबाद
नाट्य संघ पुरस्कार 1978
( शंबूक की हत्या ) इलाहाबाद नाट्य संगम, इलाहाबाद।
4. उत्तरप्रदेश
हिंदी संस्थान पुरस्कार 1979-80
( संघर्ष की ओर ) उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।
5. मानस
संगम साहित्य पुरस्कार 1978
( समग्र रामकथा ) मानस संगम, कानपुर।
6. श्रीहनुमान
मंदिर साहित्य अनुसंधान संस्थान विद्यावृत्ति 1982 ( समग्र
रामकथा ) श्रीहनुमान मंदिर साहित्य अनुसंधान संस्थान, कलकत्ता।
7. साहित्य
सम्मान 1985-86 ( समग्र साहित्य ) हिंदी अकादमी, दिल्ली।
8. साहित्यिक
कृति पुरस्कार 1987-88 ( महासमर-1, बंधन )
हिंदी अकादमी, दिल्ली।
9. डॉ.
कामिल बुल्के पुरस्कार 1989-90
( समग्र साहित्य ), राजभाषा विभाग, बिहार
सरकार , पटना।
10. चकल्लस
पुरस्कार 1991 ( समग्र व्यंग्य साहित्य ) चकल्लस पुरस्कार ट्रस्ट, 81 सुनीता, कफ परेड, मुंबई।
11. अट्टहास
शिखर सम्मान 1994 ( समग्र व्यंग्य साहित्य ) माध्यम साहित्यिक
संस्थान, लखनऊ।
12. शलाका
सम्मान 1995-96 ( समग्र साहित्य ) हिंदी अकादमी दिल्ली।
13. साहित्य
भूषण -1998 ( समग्र साहित्य ) उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।
14. व्यास
सम्मान– 2012(न भूतो न भविष्यति)
15. पद्म
श्री - 2017,भारत सरकार
डॉ. नरेंद्र कोहली का निधन :
डॉ. नरेंद्र कोहली का कोरोना संक्रमण के कारण 17 अप्रैल
2021 को राजधानी दिल्ली के सेंट स्टीफंस अस्पताल में निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे। अस्पताल में कई दिनों से उनका इलाज चल
रहा था।
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