Gender/Ling in Hindi – लिंग – परिभाषा, भेद और उदाहरण

Gender/Ling in Hindi – लिंग परिभाषा, भेद और उदाहरण

हिन्दी भाषा में संज्ञा शब्दों के लिंग का प्रभाव उनके विशेषणों तथा क्रियाओं पर पड़ता है। इस दृष्टि से भाषा के शुद्ध प्रयोग के लिए संज्ञा शब्दों के लिंग-ज्ञान अत्यावश्यक हैं। लिंगका शाब्दिक अर्थ प्रतीक या चिहून अथवा निशान होता है। संज्ञाओं के जिस रूप से उसकी पुरुष जाति या स्त्री जाति का पता चलता है, उसे ही लिंगकहा जाता है।

निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें

गाय बछड़ा देती है।

बछड़ा बड़ा होकर गाड़ी खींचता है।

पेड़-पौधे पर्यावरण को संतुलित रखते हैं।

धोनी की टीम फाइनल में पहुँची।।

सानिया मिर्जा क्वार्टर फाइनल में पहुँची।

लादेन ने पेंटागन को ध्वस्त किया।

अभी वैश्विक आर्थिक मंदी छायी है।

उपर्युक्त वाक्यों में हम देखते हैं कि किसी संज्ञा का प्रयोग पुँल्लिंग में तो किसी का स्त्रीलिंग में हुआ है। इस प्रकार लिंग के दो प्रकार हुए-

(i) पुँल्लिंग और

(ii) स्त्रीलिंग

पुँल्लिंग से पुरुष-जाति और स्त्रीलिंग से स्त्री-जाति का बोध होता है।

बड़े प्राणियों (जो चलते-फिरते हैं) का लिंग-निर्धारण जितना आसान है छोटे प्राणियों और निर्जीवों का लिंग-निर्धारण उतना ही कठिन है। नीचे लिखे वाक्यों में क्रिया का उचित रूप भरकर देखें-

भैया पढ़ने के लिए अमेरिका ……….. (जाना)

भाभी बहुत ही लज़ीज़ भोजन ………. (बनाना)

शेर को देखकर हाथी चिग्घाड़ने ……….। (लगना)

राणा का घोड़ा चेतक बहुत तेज ………..। (दौड़ना)

तनवीर नाट्य-जगत् के सिरमौर ………..। (होना)

चींटी अण्डे लेकर ……….. (चलना)

चील बहुत ऊँचाई पर उड़ ………. है। (रहना)

भरी सभा में ………. नाक कट …………… (वह/जाना)

किताब ………… ! (लिखा जाना)

मेघ बरसने ………………। (लगना)

आपने गौर किया होगा कि ऊपर के प्रथम पाँच वाक्यों को भरना जितना आसान है, नीचे के शेष वाक्यों को भरना उतना ही कठिन। क्यों? क्योंकि, आपको उनके लिंगों पर सन्देह होता है। इसलिए वैयाकरणों ने लिंग-निर्धारण के कुछ नियम बनाए हैं जो इस प्रकार हैं

नोट : वैयाकरण विभिन्न साहित्यकारों और आम जनों के भाषा-प्रयोग के आधार पर नियमों का गठन करते हैं; अपने मन से नियम नहीं बनाते। अर्थात् भाषा-संबंधी-नियम उसके प्रयोग पर निर्भर करता है।

1. प्राणियों के समूह को व्यक्त करनेवाली कुछ संज्ञाएँ पुँल्लिंग हैं तो कुछ स्त्रीलिंग :

पुंल्लिंग

परिवार कुटुम्ब संघ

दल गिरोह झुंड

समुदाय समूह मंडल

प्रशासन दस्ता कबीला

देश राष्ट्र राज्य

प्रान्त मुलक नगरनिगम

प्राधिकरण मंत्रिमंडल अधिवेशन

स्कूल कॉलेज विद्यापीठ

विद्यालय विश्वविद्यालय

स्त्रीलिंग

सभा जनता सरकार

प्रजा समिति फौज

सेना ब्रिगेड मंडली

कमिटी टोली जाति

जातपात कौम प्रजाति

भीड़ पुलिस नगरपालिका

संसद राज्यसभा

विधानसभा पाठशाला

बैठक गोष्ठी

2. तत्सम एवं विदेशज शब्द हिन्दी में लिंग बदल चुके हैं :

शब्द तस्सम/विदेशज हिन्दी में

महिमा पुं० स्त्री०

आत्मा पुँ०– (आतमा) स्त्री०

देह पुं० स्त्री०

देवता स्त्री० पुं०

विजय पुं० स्त्री०

दुकान स्त्री० – (दूकान) पुं०

मृत्यु पुं० स्त्री०

किरण पुँ० स्त्री०

समाधि पुँ० स्त्री०

राशि पुँ० स्त्री०

ऋतु पुँ० स्त्री०

वस्तु नपुं० स्त्री०

आयु नपुं० स्त्री०

3. कुछ शब्द उभयलिंगी हैं। इनका प्रयोग दोनों लिंगों में होता है :

तार आया है। तार आई है।

मेरी आत्मा कहती है। मेरा आतमा कहता है।

वायु बहती है। वायु बहता है।

पवन सनसना रही है। पवन सनसना रहा है।

दही खट्टी है। दही खट्टा है।

साँस चल रही थी। साँस चल रहा था।

मेरी कलम अच्छी है। मेरा कलम अच्छा है।

रामायण लिखी गई। रामायण लिखा गया।

उसने विनय की। उसने विनय किया।

नोट : प्रचलन में आत्मा, वायु, पवन, साँस, कलम, रामायण आदि का प्रयोग स्त्री० में तथा तार, दही, विनय आदि का प्रयोग पुँल्लिंग मे होता है। हमें प्रचलन को ध्यान में रखकर ही प्रयोग में लाना चाहिए।

4. कुछ ऐसे शब्द हैं, जो लिंगबदल जाने पर अर्थ भी बदल लेते हैं :

उस मरीज को बड़ी मशक्कत के बाद कल मिली है। (चैन)

उसका कल खराब हो चुका है। (मशीन)

कल बीत जरूर जाता है, आता कभी नहीं। (बीता और आनेवाला दिन)

मल्लिकनाथ ने मेघदूत की टीका लिखी। (मूल किताब की व्याख्या)

उसने चन्दन का टीका लगाया। (माथे पर बिन्दी)

उसने अपनी बहू को एक सुन्दर टीका दिया। (आभूषण)

वह लकड़ी के पीठ पर बैठा भोजन कर रहा है। (पीढ़ा/आसन)

उसकी पीठ में दर्द हो रहा है। (शरीर का एक अंग)

सेठजी के कोटि रुपये व्यापार में डूब गए। (करोड़)

आपकी कोटि क्या है, सामान्य या अनुसूचित? (श्रेणी)

कहते हैं कि पहले यति तपस्या करते थे। (ऋषि)

दोहे छंद में 11 और 13 मात्राओं पर यति होती है। (विराम)

धार्मिक लोग मानते हैं कि विधि सृष्टि करता है। (ब्रह्मा)

इस हिसाब की विधि क्या है? (तरीका)

उस व्यापारी का बाट ठीकठाक है। (बटखरा)

मैं कबसे आपकी बाट जोह रहा हूँ। (प्रतीक्षा)

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले। (राह)

चाकू पर शान चढ़ाया गया। (धार देने का पत्थर)

हमारे देश की शान निराली है। (इज्जत)

मेरे पास कश्मीर की बनी एक शाल है। (चादर)

उस पेड़ में काफी शाल था। (कठोर और सख्त भाग)

मैंने एक अच्छी कलम खरीदी है।

मैंने आम का एक कलम लगाया है। (नई पौध)

5. कुछ प्राणिवाचक शब्दों का प्रयोग केवल स्त्रीलिंग में होता है, उनका पुंल्लिंग रूप बनता ही नहीं।

जैसे

सुहागिन, सौत, धाय, संतति, संतान, सेना, सती, सौतन, नर्स, औलाद, पुलिस, फौज, सरकार।

6. पर्वतों, समयों, हिन्दी महीनों, दिनों, देशों, जलस्थल, विभागों, ग्रहों, नक्षत्रों, मोटीभद्दी, भारी वस्तुओं के नाम पुँल्लिंग हैं।

जैसे

हिमालय, धौलागिरि, मंदार, चैत्र, वैसाख, ज्येष्ठ, सोमवार, मंगलवार, भारत, श्रीलंका, अमेरिका, लट्ठा, शनि, प्लूटो, सागर, महासागर आदि।

7. भाववाचक संज्ञाओं में त्व, पा, पन प्रत्यय जुड़े शब्द पुँ० और ता, आस, अट, आई, ई प्रत्यय जुड़े शब्द स्त्रीलिंग हैं

पुल्लिंग

शिवत्व मनुष्यत्व

पशुत्व बचपन

लड़कपन बुढ़ापा

स्त्रीलिंग

मनुष्यता मिठास घबराहट

बनावट लड़ाई गर्मी

दूरी प्यास बड़ाई

8. ब्रह्मपुत्र, सिंधु और सोन को छोड़कर सभी नदियों के नामों का प्रयोग स्त्रीलिंग में होता है।

जैसे

गंगा, यमुना, कावेरी, कृष्णा, गंडक, कोसी आदि।

9. शरीर के अंगों में कुछ स्त्रीलिंग तो कुछ पुँल्लिंग होते हैं :

पुल्लिंग

सिर, माथा, बाल, मस्तक, ललाट, कंठ, गला, हाथ, पैर, पेट, टखना, अंगूठा, फेफड़ा, कान, मुँह, ओष्ठ, नाखून, भाल, घुटना, मांस, दाँत

10. कुछ प्राणिवाचक शब्द नित्य पुंल्लिंग और नित्य स्त्रीलिंग होते हैं:

नित्य पुंल्लिंग

गरुड़ बाज पक्षी

खग विहग कछुआ

मगरमच्छ खरगोश गैंडा

चीता मच्छर खटमल

बिच्छू रीछ जुगनू

नित्य स्त्रीलिंग

दीमक चील लूँ

मछली गिलहरी

तितली कोयल मकड़ी

छिपकली चींटी मैना

नोट : इनके स्त्रीलिंगपुंल्लिंग रूप को स्पष्ट करने के लिए नरमादा का प्रयोग करना पड़ता है। जैसेनर चील, नर मक्खी, नर मैना, मादा रीछ, मादा खटमल आदि।

11. हिन्दी तिथियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं।

जैस

प्रतिपदा, द्वितीया, षष्ठी, पूर्णिमा आदि।

12. संस्कृत के या उससे परिवर्तित होकर आए अ, , उ प्रत्ययान्त पुं० और नपुं० शब्द हिन्दी में भी प्रायः पुं० ही होते हैं।

जैसे

जग, जगत्,. जीव, मन, जीत, मित्र, पद्य, साहित्य, संसार, शरीर, तन, धन, मीत, चित्र, गद्य, नाटक, काव्य, छन्द, अलंकार, जल, पल, स्थल, बल, रत्न, ज्ञान, मान, धर्म, कर्म, जन्म, मरण, कवि, ऋषि, मुनि, संत, कांत, साधु, जन्तु, जानवर, पक्षी.

13. प्राणिवाचक जोड़ों के अलावा ईकारान्त शब्द प्रायः स्त्री० होते हैं। जैसे

कली, नाली, गाली, जाली, सवारी, तरकारी, सब्जी, सुपारी, साड़ी, नाड़ी, नारी, टाली, गली, भरती, वरदी, सरदी, गरमी, इमली, बाली, परन्तु, मोती, दही, घी, जी, पानी, आदि, ईकारान्त, होते, हुए, भी, पुँल्लिंग हैं।

14. जिन शब्दों के अन्त में त्र, , , , , आर, आय, हों वे प्रायः पुंल्लिंग होते हैं। जैसे

चित्र, रदन, वदन, जागरण, पोषण, सुख, सरोज, मित्र, सदन, बदन, व्याकरण, भोजन, दुःख, मनोज, पत्र, रमन, पालन, भरण, हरण, रूख, भोज, अनाज, ताज, समाज, ब्याज, जहाज, प्रकार, द्वार, शृंगार, विहार, आहार, संचार, आचार, विचार, प्रचार, अधिकार, आकार, अध्यवसाय, व्यवसाय, अध्याय, न्याय, सम्पूर्ण, हिन्दी, व्याकरण, और, रचना, अपवाद,

(यानी स्त्री०)

थकन, सीख, लाज, खोज़, हार, हाय, लगन, खाज, हुंकार, बौछार, गाय, चुमन, चीख, मौज़, जयजयकार, राय

15. सब्जियों, पेड़ों और बर्तनों में कुछ के नाम पुँल्लिंग तो कुछ के स्त्री हैं। जैसे

पुंल्लिंग

शलजम अदरख टमाटर

बैंगन पुदीना मटर

प्याज आलू लहसुन

धनिया खीरा करेला

कचालू कद्दू कुम्हड़

नींबू तरबूज खरबूजा

कटहल फालसा पपीता

कीकर सेब बेल

जामुन शहतूत नारियल

माल्टा बिजौरा तेंदू

आबनूस चन्दन देवदार

ताड़ खजूर बूटा

वन टब पतीला

कटोरा चूल्हा चम्मच

स्टोव चाकू कप

चर्खा बेलन कुकर

स्त्रीलिंग

बन्दगोभी फूलगोभी भिंडी

तुरई मूली गाजर

पालक मेंथी सरसों

फलियाँ फराज़बीन ककड़ी

कचनार शकरकन्दी नीम

नाशपाती लीची इमली

बीही अमलतास मौसंबी

खुबानी चमेली बेली, जूही

अंजीर नरगिस चिरौंजी

वल्लरी लता बेल, गूठी

पौध जड़ बगिया, छुरी

भट्ठी अँगीठी बाल्टी

देगची कटोरी कैंची

थाली चलनी चक्की

थाल तवा नल

16. रत्नों के नाम, धातुओं के नाम तथा द्रवों के नाम अधिकांशतः पुंल्लिंग हुआ करते हैं। जैसे

हीरा, पुखराज, पन्ना, नीलम, लाल, जवाहर, मूंगा, मोती, पीतल, ताँबा, लोहा, कांस्य, सीसा, एल्युमीनियम, प्लेटिनम, यूरेनियम, टीन, जस्ता, पारा, पानी, जल, तेल, सोडा, दूध, शर्बत, रस, जूस, कहवा, कोका, जलजीरा, आदि।

अपवाद (यानी स्त्री०)

सीपी, मणि, रत्ती, चाँदी, मद्य, शराब, चाय, कॉफी, लस्सी, छाछ, शिकंजवी, स्याही, बूंद, धारा आदि

17. आभूषणों में स्त्रीलिंग एवं पुँल्लिंग शब्द हैं

पुँल्लिंग

कंगन कड़ा कुंडल

गजरा झूमर बाजूबन्द

हार काँटे झुमका

कील शीशफूल आभूषण

स्त्रीलिंग

आरसी नथ तीली माला

बाली झालर चूड़ी बिंदिया

पायल अंगूठी कंठीमुद्रिका

18. किराने की चीजों के नाम, खानेपीने के सामानों के नाम और वस्त्रों के नामों में पुँल्लिग स्त्रीलिंग इस प्रकार होते हैं।

पुँल्लिंग

अदरक जीरा धनिया

मसाला अमचूर अनारदाना

पराठा हलवा समोसा

भात भठूरा कुल्या

चावल रायता गोलगप्पे

पापड़ लड्डू रसगुल्ला

मोहनभोग पेड़ फुल्का

रूमाल कुरता पाजामा

कोट सूट मोजे

जांधिया दुपट्टा टोप

गाऊन घाघरा पेटीकोट

स्त्रीलिंग

सोंठ हल्दी सौंफ अजवायन

दालचीनी लवंग (लौंग) हींग सुपारी

इलायची मिर्च कालमिर्च इमली

रोटी रसा खिचड़ी पूड़ी

दाल खीर चपाती चटनी

पकौड़ी भाजी सब्जी तरकारी

काँजी बर्फी मट्ठी बर्फ

चोली अंगिया जुर्राब बंडी

गंजी पतलून कमीज साड़ी

धोती पगड़ी चुनरी निक्कर

बनियान लँगोटी टोपी

19. , , , ऊ अन्तवाली संज्ञाएँ स्त्रीलिंग और पुँल्लिंग इस प्रकार होती हैं

पुँल्लिग

कुर्ता कुत्ता बूढ़ा

शशि रवि यति

कवी हरि मुनि

ऋषि पानी दानी

घी प्राणी स्वामी

मोती दही गुरु

साघु मधु आलू

काजू भालू आँसू

स्त्रीलिंग

प्रार्थना, दया, आज्ञा, लता, माला, भाषा, कथा, दशा, परीक्षा, पूजा, कृपा, विद्या, शिक्षा, दीक्षा, बुद्धि, रुचि, राशि, क्रांति, नीति, भक्ति, मति, छवि, स्तुति, गति, स्थिति, मुक्ति, रीति, नदी, गठरी, उदासी, सगाई, चालाकी, चतुराई, चिट्ठी, मिठाई, मूंगफली, लकड़ी, पढ़ाई, ऋतु, वस्तु, मृत्यु, वायु, बालू, लू, झाडू, वधू.

20. , आई, हट, वट, ता आदि अन्तवाली संज्ञाएँ प्रायः स्त्रीलिंग होती हैं। जैसे

राख, भीख, सीख, भलाई, बुराई, ऊँचाई, गहराई, सच्चाई, आहट, मुस्कराहट, घबराहट, झुंझलाहट, झल्लाहट, सजावट, बनावट, मिलावट, रूकावट, थकावट, स्वतंत्रता, पराधीनता, लघुता, मिगता, शत्रुता, कटुता, मधुरता, सुन्दरता, प्रसन्नता, सत्ता, रम्यता, अक्षुण्णता

21. भाषाओं तथा बोलियों के नाम स्त्रीलिंग हुआ करते हैं। जैसे

हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला, मराठी, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, सिंधी, उर्दू, अरबी, फारसी, चीनी, फ्रेंच, लैटिन, ब्रज, अपभ्रंश, प्राकृत, बुंदेली, मगही, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, पंजाबी, अफ्रीदी.

22. अरबीफारसी उर्दू के अन्तवाली संज्ञाएँ प्रायः स्त्रीलिंग होती हैं। जैसे

मोहब्बत, शोहरत, इज्जत, जिल्लत, किल्लत, शरारत, हिफाजत, इबादत, नसीहत, बगावत, हुज्जत, जुर्रत, कयामत, नजाकत, गनीमत, तमिल, गुजराती, ग्रीक, बाँगडू, सम्पूर्ण, हिन्दी, व्याकरण, और रचना.

23. अरबीफारसी के अन्य शब्दों में कुछ स्त्रीलिंग तो कुछ पुँल्लिंग इस प्रकार होते है

पुँल्लिग

हिसाब, मकान, मेजबान, बाजार, वक्त, जोश, जवाब, कबाब, इनसान, दरबान, दुकानदार, खत, कुदरत, कशीदाकार, जनाब, मेहमान, अखबार, मजा, होश, नवाब.

स्त्रीलिग

दीवार, दुनिया, दवा, शर्म, दुकान, सरकार, हवा, फिजाँ, हया, गरीबी, अमीरी, लाचारी, खराबी, लाश, तलाश, बारिश, शोरिश, वफादारी, मजदूरी, कशिश, कोशिश.

24. अंग्रेजी भाषा से आए शब्दों का लिंग हिन्दी भाषा की प्रकृति के अनुसार तय होता है। जैसे

पुल्लिंग

टेलीफोन टेलीविजन रेडियो

स्कूल स्टूडेंट स्टेशन

पेन बूट बटन

स्त्रीलिंग

ग्राउंड, यूनिवर्सिटी, बस, जीव, कार, ट्रेन, बोतल, पेंट, पेंसिल, फिल्म, फीस, पिक्चर, फोटो, मशीन.

25. क्रियार्थक संज्ञाएँ पुंल्लिग होती हैं। जैसे

नहाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।

टहलना हितकारी होता है।

गाना एक व्यायाम होता है।

नोट : जब कोई क्रियावाची शब्द (अपने मूल रूप में) किसी कार्य के नाम के रूप में प्रयुक्त हो तब वह संज्ञा का काम करने लगता है। इसे क्रियार्थक संज्ञाकहते हैं। ऊपर के तीनों वाक्यों में लाल रंग के पद संज्ञा हैं न कि क्रिया।

26. द्वन्द्व समास के समस्तपदों का प्रयोग पुँल्लिंग बहुवचन में होता है।

नीचे लिखे वाक्यों पर ध्यान दें

मेरे मातापिता आए हैं।

उनके भाईबहन शहर में पढ़ते हैं।

लिंगसंबंधी कुछ रोचक और विचारणीय बातें :

हिन्दी भाषा में लिंगों का तन्त्र काफी विकृत एवं भ्रामक है; क्योंकि एक ही शब्द का एक पर्याय तो स्त्रीलिंग है; जबकि दूसरा पुँल्लिंग। हिन्दी के भाषाविदों एवं विद्वानों के लिए यह चुनौती भरा कार्य है कि वे मिलजुलकर इसपर विमर्श करें और कोई ठोस आधार तय करें। भारतसरकार एवं राष्ट्रभाषापरिषद् को भी सचेतन रूप से इस पर ध्यान देना चाहिए, नहीं तो कहीं यह भाषा अपनी पहचान न खो दे। वर्तमान समय में हिन्दी भाषा का कोई ऐसा कोश नहीं है जो भ्रामक नहीं है।

नीचे लिखे वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें और तर्क की कसौटी पर परखें कि कितनी हास्यास्पद बात है कि यदि एक शब्द जो स्त्रीलिंग है तो उसके तमाम पर्यायवाची शब्द भी स्त्रीलिंग ही होने चाहिए अथवा एक पुंल्लिंग तो उसके सभी समानार्थी पुंल्लिंग ही हों।

इसी तरह एक और बात है, यदि हमारा कोई अंग (सम्पूर्ण रूप से) पुंल्लिंग या स्त्रीलिंग है तो फिर उसका अलगअलग हिस्सा कैसे भिन्न लिंग का हो जाता है।

निम्नलिखित उदाहरणों पर विचार करें

हाथ

हाथ : पुँल्लिंग

बाँह : स्त्रीलिंग

उँगली : स्त्रीलिंग

कलाई : स्त्रीलिंग

अंगूठा : पुँल्लिंग

पैर

पैर : पुंल्लिग

जाँघ : स्त्रीलिंग

घुटना : पुंल्लिग

तलवा : पुंल्लिंग

एड़ी : स्त्रीलिंग

बालयदि यह पुंल्लिंग है तो फिर दाढ़ी, मूंछ, चेहरे पर स्थित आँख, नाक, भौंह, ढोड़ी आदि के बाल स्त्रीलिंग क्यों हैं?

दाढ़ी, मूंछ, जीभये सभी स्त्रीलिंग और मुँह, कान, गाल, माथा, दाँतये सभी पुँल्लिंग

नोट : पुंल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के नियमों और उदाहरणों की चर्चा शब्दप्रकरण में स्त्री प्रत्ययबताने के क्रम में हो चुकी है। वाक्य द्वारा लिंगनिर्णय :

वाक्यद्वारा लिंगनिर्णय करने की मुख्य रूप से निम्नलिखित विधियाँ हैं :

1. संबंध विधि

इस विधि से लिंगनिर्णय करने के लिए हमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए :

(a) पुँल्लिंग संज्ञाओं के लिए संबंध के चिह्न कानाराका प्रयोग करना चाहिए।

(b) उक्त संज्ञा को या तो वाक्य का उद्देश्य या कर्म या अन्य कारकों में प्रयोग करना चाहिए।

(c) संज्ञा का जिससे संबंध है उन दोनों को एक साथ रखना चाहिए।

नीचे लिखे उदाहरणों को देखें

रूमाल (उद्देश्य रूप में)

यह मेरा रूमाल है। (मेरासे लिंगस्पष्ट)

उनका रूमाल सुन्दर है। (उनकासे लिंगस्पष्ट)

अपना भी एक रूमाल है। (अपनासे लिंगस्पष्ट)

पुस्तक

वह मेरी पुस्तक है। (मेरीसे लिंगस्पष्ट)

उसकी पुस्तक यहाँ है। (उसकीसे लिंगस्पष्ट)

वहाँ अपनी पुस्तक है। (अपनीसे लिंगस्पष्ट)

कर्म एवं अन्य कारक रूपों में

1. वह मेरा रूमाल उपयोग में लाता है। – (कर्म रूप)

2. वह मेरे रूमाल के लिए दौड़ पड़ा। – (सम्प्रदान रूप)

3. मेरे रूमाल में गुलाब का फूल बना है। – (अधिकरण रूप)

4. वह मेरे रूमाल से बल्ब खोलता है। – (करण रूप)

5. मेरे रूमाल से सिक्का गायब हो गया। – (अपादान रूप)

अब आप स्वयं पता करें पुस्तक का प्रयोग किस कारक में हुआ है

1. मेरी पुस्तक जीने की कला सिखाती है।

2. उसने मेरी पुस्तक देखी है।

3. मेरी पुस्तक में क्या नहीं है।

4. आपकी पुस्तक पर पेपर किसने रख दिया है?

5. मेरी पुस्तक से ज्ञान लेकर देखो।

6. आप मेरी पुस्तक के लिए परेशान क्यों हैं?

7. मै अपनी पुस्तक आपको नहीं दूंगा।

2. विशेषणविधि

इस विधि से लिंगस्पष्ट करने के लिए आप दी गई संज्ञा के लिए कोई सटीक आकारान्त (पुंल्लिंग के लिए) या ईकारान्त (स्त्री० के लिए) विशेषण का चयन कर लीजिए, फिर संबंध विधि की तरह विभिन्न रूपों में उसका प्रयोग कर दीजिए।

आकारान्त विशेषण : अच्छा, बुरा, काला, गोरा, भूरा, लंबा, छोटा, ऊँचा, मोटा, पतला.

ईकारान्त विशेषण : अच्छी, बुरी, काली, गोरी, भूरी, लंबी, छोटी, ऊँची, मोटी, पतली

नीचे लिखे उदाहरण देखें मोती :

मोती चमकीला है। (चमकीलासे लिंग स्पष्ट)

दही : दही खट्टा नहीं है। (खट्टासे लिंग स्पष्ट)

घी : घी महँगा है। (महँगासे लिंग स्पष्ट)

पानी : गंदा है। (गंदासे लिंग स्पष्ट)

रूमाल : रूमाल चौड़ा है। (चौड़ासे लिंग स्पष्ट)

पुस्तक : पुस्तक अच्छी है। (अच्छीसे लिंग स्पष्ट)

कलम : कलम नई है। (नईसे लिंग स्पष्ट)

ग्रंथ : ग्रंथ बड़ा है। (बड़ासे लिंग स्पष्ट)

रात : रात डरावनी है। (डरावनीसे लिंग स्पष्ट)

दिन : दिन छोटा है। (छोटासे लिंग स्पष्ट)

मौसम : मौसम सुहाना है। (सुहानासे लिंग स्पष्ट)

3. क्रिया विधि

इस विधि से लिंगनिर्धारण के लिए भी आकारान्त व ईकारान्त क्रिया का प्रयोग होता है। विशेषणविधि की तरह पुंल्लिंग संज्ञा के लिए आकारान्त और स्त्रीलिंग संज्ञा के लिए ईकारान्त क्रिया का प्रयोग किया जाता है।

निम्नलिखित वाक्यों को देखें-

गाय : गाय मीठा दूध देती है।

मोती : मोती चमकता है।

बचपन : उसका बचपन लौट आया है।

सड़क : यह सड़क लाहौर तक जाती है।

आदमी : आदमी आदमीयत भूल चुका है।

पेड़ : पेड़ ऑक्सीजन देता है।

चिड़िया : चिड़िया चहचहा रही है।

दीमक : . दीमक लकड़ी को बर्बाद कर देती है।

खटमल : खटमल परजीवी होता है।

नोट : उपर्युक्त वाक्यों में आपने देखा कि सभी संज्ञाओं का प्रयोग उद्देश्य (कत्ता) के रूप में हुआ है। ध्यान दें क्रियाविधि से लिंगनिर्णय करने पर वह संज्ञा शब्द (जिसका लिंगस्पष्ट करना है) वाक्य में कर्ता का काम करता है।

4. कर्ता में नेचिह्न लगाकर

इस विधि से लिंगनिर्णय करने के लिए हमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए

1. दिए गए शब्द को कर्म बनाएँ और कोई अन्य कर्ता चुन लें।

2. कर्ता में नेचिह्न और कर्ममें शून्य चिह्न (यानी कोई चिह्न नहीं) लगाएँ।

3. क्रिया को भूतकाल में कर्म (दिए गए शब्द) के लिंगवचन के अनुसार रखें।

ठीक इस तरह

कर्ता (ने) + दिया गया शब्द (चिह्न रहित) + कर्मानुसार क्रिया

नीचे लिखे उदाहरणों को देखें

घोड़ा : मैंने एक अरबी घोड़ा खरीदा।

घड़ी : चाचाजी ने मुझे एक घड़ी दी।

कुर्सी : आपने कुर्सी क्यों तोड़ी?

साइकिल : मम्मी ने एक साइकिल दी।

गोली : तुमने ही गोली चलाई थी।

जूं : बंदर ने जूं निकाली।

कान : मैंने कान पकड़ा।

फसल : किसानों ने फसल काटी।

सूरज : मैंने उगता सूरज देखा।

ध्यातव्य बातें : हमने केवल एकवचन संज्ञाओं का वाक्यप्रयोग बताया है। बहुवचन के लिए उसी के अनुसार संबंध (केनेरे) विशेषण एवं क्रिया (एकारान्तईकारान्त) लगाने चाहिए।

A. निम्नलिखित संज्ञाओं को पुलिंग एवं स्त्रीलिंग में सजाएँ :

चिड़िया, गाय, मोर, बछड़ा, आदमी, चील, दीमक, खटिया, वर्षा, पानी, चीलर, खटमल, गैं, नीम, औरत, पुरुष, महिला, किताब, ग्रंथ, समाचार, खबर, कसम, प्रतिज्ञा, सोच, पान, घी, जी, मोती, चीनी, जाति, चश्मा, नहर, झील, पहाड़, चोटी, बरतन, ध्यान, योगी, सपना, कैंची, नाली, गंगा, ब्रह्मपुत्र, खाड़ी, जनवरी, सौगात, संदेश, दिन, रात, नाक, कान, आँख, जी, जीभ, वायु, दाँत, गरमी, सर्दी, कफन, आकाश, दर्पण, चाँद, चाँदनी, छड़ी, साधु, विद्या, बचपन, मिठास, सफलता, पाठशाला, नौका, सूर्य, तारा, पंखा, दर्पण.