Karak in Hindi | कारक परिभाषाभेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण

Karak in Hindi | कारक परिभाषा, भेद और उदाहरण हिन्दी व्याकरण

कारक क्या होता है? What is the Karak

परिभाषा, चिह्न, प्रकार, परसगों का प्रयोग, संज्ञा एवं सर्वनामों पर कारक का प्रभावअभ्यास

जो क्रिया की उत्पत्ति में सहायक हो या जो किसी शब्द का क्रिया से संबंध बताए वह कारकहै।

जैसेमाइकल जैक्सन ने पॉप संगीत को काफी ऊँचाई पर पहुँचाया।

यहाँ पहुँचानाक्रिया का अन्य पदों माइकल जैक्सन, पॉप संगीत, ऊँचाई आदि से संबंध है। वाक्य में ने’, ‘कोऔर परका भी प्रयोग हुआ है। इसे कारकचिह्न या परसर्ग या विभक्तिचिह्न कहते हैं। यानी वाक्य में कारकीय संबंधों को बतानेवाले चिह्नों को कारकचिह्न अथवा परसर्ग कहते हैं। हिन्दी में कहींकहीं कारकीय चिह्न लुप्त रहते हैं।

जैसे

घोड़ा दौड़ रहा था।

वह पुस्तक पढ़ता है।

आदि। यहाँ घोड़े’ ‘वहऔर पुस्तकके साथ कारकचिह्न नहीं है। ऐसे स्थलों पर शून्य चिह्न माना जाता है। यदि ऐसा लिखा जाय : घोड़ा ने दौड़ रहा था।

उसने (वह + ने) पुस्तक को पढ़ता है।

तो वाक्य अशुद्ध हो जाएँगे; क्योंकि प्रथम वाक्य की क्रिया अपूर्ण भूत की है। अपूर्णभूत में कर्ताके साथ ने चिह्न वर्जित है। दूसरे वाक्य में क्रिया वर्तमान काल की है। इसमें भी कर्ता के साथ ने चिह्न नहीं आएगा। अब यदि वह पुस्तक को पढ़ता हैऔर वह पुस्तक पढ़ता हैमें तुलना करें तो स्पष्टतया लगता है कि प्रथम वाक्य में कोका प्रयोग अतिरिक्त या निरर्थक हैं; क्योंकि वगैर कोके भी वाक्य वही अर्थ देता है। हाँ, कहींकहीं कोके प्रयोग करने से अर्थ बदल जाया करता है।

जैसे

वह कुत्ता मारता है : जान से मारना

वह कुत्ते को मारता है : पीटना

कर्ता कारक

कर्म कारक

करण कारक

सम्प्रदान कारक

संबंध कारक

अधिकरण कारक

संबोधन कारक

हिन्दी भाषा में कारकों की कुल संख्या आठ मानी गई है, जो निम्नलिखित हैं

कारक परसर्ग/विभक्ति

1. कर्ता कारक शून्य, ने (को, से, द्वारा)

2. कर्म कारक शून्य, को

3. करण कारक से, द्वारा (साधन या माध्यम)

4. सम्प्रदान कारक को, के लिए

5. अपादान कारक से (अलग होने का बोध)

6. संबंध कारक काकेकी, नानेनी; रारेरी

7. अधिकरण कारक में, पर

8. संबोधन कारक हे, हो, अरे, अजी…….

कर्ता कारक

जो क्रिया का सम्पादन करे, ‘कर्ता कारककहलाता है।अर्थात् कर्ता कारक क्रिया (काम) करता है। जैसे

आतंकवादियों ने पूरे विश्व में आतंक मचा रखा है।

इस वाक्य में आतंक मचानाक्रिया है, जिसका सम्पादक आतंकवादीहै यानी कर्ता कारक आतंकवादीहै।

कर्ता कारक का परसर्ग शून्यऔर नेहै। जहाँ नेचिह्न लुप्त रहता है, वहाँ कर्ता का शून्य चिह्न माना जाता है।

जैसे

पेड़पौधे हमें ऑक्सीजन देते हैं।

यहाँ पेड़पौधे में शून्य चिह्नहै।

कर्ता कारक में शून्यऔर नेके अलावा कोऔर से/द्वारा चिह्न भी लगया जाता है।

जैसे

उनको पढ़ना चाहिए।

उनसे पढ़ा जाता है।

उनके द्वारा पढ़ा जाता है।

कर्ता के नेचिह्न का प्रयोग :

सकर्मक क्रिया रहने पर सामान्य भूत, आसन्न भूत, पूर्णभूत, संदिग्ध भूत एवं हेतुहेतुमद् भूत में कर्ता के आगे नेचिह्न आता है। जैसे

मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना। (सामान्य भूत)

मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना है। (आ० भूत)

मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना था। (पूर्ण भूत)

मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना होगा। (सं०भूत)

मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना होता। (हेतुभूत)

नीचे लिखे वाक्यों के कर्ता कारकों में नेचिह्न लगाकर वाक्यों का पुनर्गठन करें :

1. मैं उसे इशारा किया; मगर वह बोलता ही चला गया।

2. मैं उसे एकबार पढ़ना शुरू किया तो पढ़ता ही गया।

3. वह कहा था कि उसने चोरी नहीं की है।

4. वह देखा कि परा पल बाढ में डबा है।

5. आँधी अपना विकराल रूप धारण किया।

6. दुश्मन के सैनिक देखा और गोलियाँ बरसाने लगा।

7. मैं तो आपको तभी बताया था। 8. तुम इससे कुछ अलग सोचा।।

9. जिस समय आप आवाज़ दी, मैं तैयार हो चुका था।

10. सचसच बताओ, तुम उसे किस बात पर पीटे?

11. पहले वह मुझे गाली दिया फिर मैं।

12. मैं उसे बारबार समझाया।

13. यह फिल्म में कई बार देखी है।

14. पाकिस्तान विश्वकप जीता।

15. इस नौकरी से पहले वह तीन नौकरियाँ छोड़ा है।

16. गार्ड हरी झंडी दिखाया और गाड़ी चल पड़ी।

17. वह जाने से पहले भोजन किया था।

18. आप मुझसे पूछे ही नहीं इसलिए मैं नहीं बताया।

19. रोगी पानी माँगा, मगर नर्स अनसुनी कर दी।

20. उस दिन पिताजी मुझसे पूछे ही नहीं।

भूलनाक्रिया के कर्ता के साथ नेचिह्न का प्रयोग नहीं होता। जैसे

वह तो भूले थे हमें, हम भी उन्हें भूल गए।

आप अपना संकल्प न भूले होंगे।

लानाक्रिया भी अपने साथ कर्ता के नेचिह्न का निषेध करती है। लाना–’लेऔर आनाके संयोग से बनी है। पहले इसका रूप ल्यानाथा, बाद में लानाहो गया। चूँकि इसका अंतिम खंड अकर्मक है, इसलिए इसका प्रयोग होने पर कर्ता कारक में नेचिह्न नहीं आता है। जैसे

पिताजी बच्चों के लिए मिठाई लाए।

श्यामू पीछे हो लिया।

बोलना, समझना, बकना, जनना (जन्म देना), सोचना और पुकारना क्रियाओं के कर्ता के साथ नेचिह्न विकल्प से आता है।

जैसे

महाराज बोले। – (प्रेमसागर)

वह झूठ बोला। – (पं० अम्बिका प्र० बाजपेयी)

रामचन्द्रजी ने झूठ नहीं बोला। – (पं० रामजी लाल शर्मा)

उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला। – (बालविनोद)

उसने कई बोलियाँ बोलीं। – (पं० अ० प्र० बाजपेयी)

हम तुम्हारी बात नहीं समझे।

मैंने आपकी बात नहीं समझी।

हम न समझे कि यह आना है या जाना तेरा। – (भट्ट जी)

तुम बहुत बके। तुमने बहुत बका। – (पं० अंबिकादत्त)

भैंस पाड़ा जनी है। भैंस ने पाड़ा जना। – (पं० अंबिकादत्त)

बकरी तीन बच्चे जनी। – (पं० केशवराम भट्ट)

चित्रांगदा ने तुझे जना। – (लाला भगवान दीन)

आमंत्रित कर सूर्यदेव को मैंने मन में, मंत्रशक्ति से तुझे जना था पिताभवन में। – (मैथिलीशरण गुप्त)

उसने यह बात सोची।।  वह यह बात सोचा।। – (पं० केशवराम भट्ट)

पूतना पुकारी। चोबदार पुकाराकरीम खाँ निगाह रूरू – (राजा शिवप्रसाद)

सत्पुरुषों ने जिसको बारंबार पुकारा, अच्छा है।

जिसने गली में तुमको पुकारा। – (पं० केशवराम भट्ट)

नोट : पं० केशवराम भट्ट ने स्पष्ट कहा है कि कर्म लुप्त रहने पर नेभी लुप्त रहता है, नहीं तो नहीं। बात ऐसी है कि हमारे विद्वानों और साहित्यकारों ने कर्म रहने पर भी कहीं तो कर्ता के साथ नेका प्रयोग किया है कहीं नहीं किया।

सजातीय कर्म लेने के कारण जो अकर्मक क्रिया सकर्मक हो जाती है, उसके कर्ता के साथ नेचिह्न नहीं आता; किन्तु कोईकोई ऐसी कुछ क्रियाओं के साथ भूतकाल के अपूर्णभूत को छोड़ अन्य भेदों में लाते भी हैं। जैसे

सिपाही कई लड़ाइयाँ लड़ा।

वह शेर की बैठक बैठा। – (पं० कामता प्र० गुरु)

मैं क्रिकेट खेला। – (पं० अ० दत्त व्यास)

उसने टेढ़ी चाल चली। मैंने बड़े खेल खेले। – (पं० अंबिका प्र० बाजपेयी)

उसने चौपड़ खेली। नहाना, थूकना, छींकना और खाँसना : ये अकर्मक क्रियाएँ हैं फिर भी अपने साथ कर्ता को नेचिह्न लाने के लिए बाध्य करती हैं। यानी इन क्रियाओं के प्रयोग होने पर भूतकाल के उक्त भेदों में कर्ता के साथ नेचिह्न का प्रयोग अवश्यमेव होता है। जैसे

मैंने सर्दी के कारण छींका है।

आज आपने नहाया क्यों नहीं?

दादाजी ने जोर से खाँसा था,

तभी तो मम्मी अंदर चली गई।

यह जहाँतहाँ किसने थूका है?

उक्त चारों अकर्मक क्रियाओं के अलावा अन्य किसी अकर्मक क्रिया के रहने पर कर्ता के साथ नेचिह्न कभी नहीं आता।

जैसे

वह अभीअभी आया है।

मैं वहाँ कई बार गया हूँ।

बच्चा अभी तो सोया था।

संयुक्त क्रिया के सभी खंड सकर्मक रहने की स्थिति में भूतकाल के उक्त भेदों में कर्ता के साथ नेचिह्न का प्रयोग होता है। जैसे

सालिम अली ने पक्षियों को देख लिया था।

मैंने इस प्रश्न का उत्तर दे दिया है।

परन्तु, नित्यताबोधक सकर्मक संयुक्त क्रिया का कर्ता नेचिह्न कभी नहीं लाता है।

जैसे

वे बारबार गिना किये, हाथ कुछ न लगा। (भारतेन्दु)

वह चित्रसी चुपचाप खड़ी सुना की। (पं० अ० व्यास)

इस दृश्य को पाण्डव सामने बैठे देखा किए (बाल भारत)

हजरत भी कल कहेंगे कि हम क्या किए। (पं० केशवराम भट्ट)

यदि संयुक्त अकर्मक क्रिया का अंतिम खण्ड डालनाहो तो उक्त भूतकालों में कर्ता के साथ नेचिह्न अवश्य आता है? किन्तु यदि अंतिम खंड देनाहो तो नेचिह्न विकल्प से आता है।

जैसे

उसने रातभर जाग डाला। – (पं० अ० दत्त व्यास)

जब मानसिंह चढ़ आए तब पठानों की सेना चल दी। – (पं० केशवराम भट्ट)

श्रीकृष्ण मथुरा चल दिए। – (प्रेम सागर)

मैं अपनासा मुँह लेकर चल दिया। – (विद्यार्थी)

मुस्करा देना, हँस देना, रो देना : इन क्रियाओं के कर्ता नेचिह्न निश्चित रूप से लाते हैं। जैसे

मोहन ने नारद को देखकर मुस्करा दिया।

आकर के मेरी कब्र पर तुमने जो मुस्करा दिया।

बिजली छिटक के गिर पड़ी और सारा कफन जला दिया। – (हबीब पेंटर)

मुकद्दर ने रो दिया हाथ मलकर।। – (पं० केशवराम भट्ट)

संकेत में संयुक्त क्रिया के अन्त में होनाका हेतुहेतुमद्भूत रूप नेचिह्न के साथ भी प्रयुक्त होता है। जैसे

यदि संजीव ने पढ़ा होता तो अवश्य सफल होता।

यदि भाई जी आए थे तो आपने रोक लिया होता।

प्रेरणार्थक रूप बन जाने पर सभी क्रियाएँ सकर्मक हो जाती हैं और सभी प्रेरणार्थक क्रियाओं के रहने पर सामान्य, आसन्न, पूर्ण, संदिग्ध आदि भूतकालों में कर्ता के साथ नेचिह्न आता है।

जैसे

राजू श्रीवास्तव ने सबों को हँसाया।

माँ ने पत्र भिजवाया है।

पुत्र ने प्रणाम कहलवाया है।

अच्छे अंकों ने राहुल को सम्मान दिलाया।

कठिन मेहनत ने हर्ष को डॉक्टर बनाया था।

वर्तमान एवं भविष्यत् कालों में कर्ता के साथ नेचिह्न कभी नहीं आता। जैसेमैं भी वह उपन्यास पढूँगा।

तुम वह नाटकसंग्रह पढ़ते होगे। सालिम अली पक्षियों को पक्षी की निगाह से देखते हैं। अपूर्ण भूतकाल की क्रिया रहने पर कर्ता के साथ नेचिह्न कभी नहीं आता है। जैसे

वह तरुमित्रा का प्रतिनिधित्व कर रहा था।

जब मि० ग्लााड चलते थे, तब पेड़ेपौधे तक सहम जाते थे।

पूरी लंका जल रही थी और विभीषण भजन कर रहे थे।

चुकनाक्रिया रहने पर भूतकाल में भी कर्ता के साथ नेचिह्न का प्रयोग नहीं होता है।

जैसे

मैं भात खा चुका/हूँ/था/ होता। वह देख चुका था।

सलोनी यह संग्रह पढ़ चुकी होगी

क्रिया पर कर्ता के चिहनों का प्रभाव :

1. चिह्नरहित (नेचिह्नरहित) कर्ता की क्रिया का रूप कर्ता के लिंगवचन के अनुसार होता है।

जैसे

उड़ान भरता एक वायुयान नीचे गिर गया था।

आज भी सुपुत्र मातापिता की सेवा को अपना कर्तव्य मानते हैं।

वह अपने कैरियर के प्रति बेहद चिंतित है।

उक्त उदाहरणों में हम देख रहे हैं कि कर्ता का शून्य चिह्न है यानी उसके साथ नेनहीं है और कर्म के रहने पर भी क्रिया कर्त्तानुसार ही हुई है।

2. यदि वाक्य में एक ही लिंगवचन के कई चिह्नरहित कर्ता और’, ‘तथा’, एवं, ‘’ – आदि से जुड़े हों तो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन हो जाती है। यानी

कई कर्ता (नेरहित एक ही लिंग) + क्रिया बहुवचन (समान लिंग)

जैसे

आरती, शालू और मेघा अष्टम वर्ग में पढ़ती हैं।

शरद्, अंकेश और अभिनव नवम वर्ग में पढ़ते हैं।

3. यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक चिह्नरहित कर्ता हों तो क्रिया बहुवचन के सिवा लिंग में अंतिम कर्ता के अनुसार होगी। जैसे

एक घोड़ा, दो गदहे और बहुतसी बकरियाँ मैदान में चर रही हैं।

एक बकरी, दो गदहे और चार घोड़े मैदान में चरते हैं।

4. यदि अंतिम कर्ता एकवचन हो तो क्रिया एकवचन और बहुवचन दोनों होती है।

जैसे

तुम्हारी बकरियाँ, उसकी घोड़ी और मेरा बैल उस खेत में चरता हैचरते हैं। – (पं० अंबिकादत्त व्यास)

5. यदि चिह्नरहित अनेक कर्त्ता परस्पर किसी विभाजक (या, अथवा, वा आदि) से जुड़े हों तो क्रिया अंतिम कर्ता के लिंगवचन के अनुसार होती है।

जैसे

मेरी बेटी या उसका बेटा पर्यावरण को महत्त्व नहीं देता।

स्थिति ऐसी है कि मोनू की गाय या मेरा बैल बिकेगा।

6. यदि चिनरहित अनेक कर्ताओं और क्रियाओं के बीच में कोई समुदायवाचक शब्द आए तो क्रिया, लिंग और वचन में समुदायवाचक शब्द के अनुसार होगी।

जैसे

अमरीकातालिबान की लड़ाई में बच्चे, बूढ़े, जबान, औरतें सबके सब प्रभावित हुए।

7. आदर के लिए एकवचन कर्ता के साथ बहुवचन क्रिया का प्रयोग होता है, यदि कर्ता चिह्नरहित हो तो जैसे

पिताजी आनेवाले हैं। दादाजी रोज सुबह टहलने जाते हैं।

दादीजी चश्मा पहनकर बहुत सुन्दर लगती हैं।

8. यदि चिह्नरहित अनेक कर्ताओं से बहुवचन का अर्थ निकले तो क्रिया बहुवचन और यदि एकवचन का अर्थ निकले तो क्रिया एकवचन होती है; चाहे कर्ताओं के आगे समूहवाचक शब्द हों अथवा नहीं हों।

जैसे

2007 की बाढ़ के कारण खेतीबाड़ी घरद्वार, धनदौलत मेरा सब चला गया।

शिक्षक की प्रेरक बातें सुन मेरा उत्साह, धैर्य और आनंद बढ़ता चला गया।

9. जब कोई स्त्री या पुरुष अपने परिवार की ओर से या किसी समुदाय की ओर से जिसमें स्त्रीपुरुष दोनों हों, कुछ कहता है तब वह स्त्री हो या पुरुष (कहनेवाला) अपने लिए पुँ० बहुवचन क्रिया का प्रयोग करता है।

जैसे

ब्राह्मणी ने कुंती से कहा, “न जाने हम बकासुर के अत्याचार से कब और कैसे छुटकारा पाएँगे?”

10. चिहनरहित मुख्य कर्ता के अनुसार क्रिया होती है, विधेय के अनुसार नहीं।

जैसे

लड़की बीमारी के कारण सूखकर काठ हो गई।

वह लड़का आजकल लड़की बना हुआ है।

यह भाग्य का ही फेरा है कि अर्जुन विराट नगर में बृहन्नला बन गया

औरतें भी आदमी कहलाती हैं, जनाब!

11. यदि कर्ता चिनयुक्त हो (नेसे जुड़ा) और वाक्य कर्मरहित तो क्रिया पुं० एकवचन होती है। जैसे

मेरी माँ ने कहा था।

पिताजी ने देखा था।

शिक्षकों ने पढ़ाया होगा।

कवि ने कहा है।

किसी विद्वान् ने सच ही कहा है कि

निम्नलिखित वाक्यों के खाली स्थानों में व्यक्तिवाचक या अन्य संज्ञाओं का प्रयोग करते हुए वाक्य पूरे करें :

1. ……….. ने ………. को पहले ही समझाया था, लेकिन ………. ने मेरी बात मानी ही नहीं।

2. ये सब बातें ……… ने ही बतायी थीं।

3. ……. ने ………. से क्या कहा था?

4. वे लोग शिकायत कर रहे थे ……… ने जरूर गाली दी होगी।

5. ………. ने जो भी कहा है पुत्र के भले के लिए ही कहा।

6. ……………. ने स्पष्ट कह दिया था कि अब मरीज को यहाँ आने की आवश्यकता नहीं है।

7. ……………. ने तय कर लिया था कि उसपर मुकदमा चलना ही चाहिए।

8. ……………. ने चोर को मकान में घुसते देखा और सीटी बजाने लगा।

9. ……………. ने जिस काम के लिए आरुणि से कहा था उसने वह काम कर दिखाया।

10. ……………. ने अपना अज्ञातवास भी बखूबी पूरा किया।

11. ……………. ने गीता में सच ही कहा है कि हमें निरंतर अपना काम करते रहना चाहिए।

12. ……………. ने ऐसी सजा सुनाई कि सभी ताली बजाने लगे।

13. क्या ……….. ने तेरे साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया है? उसपर केस कर बता देना चाहिए कि दहेज लेना और देना दोनों गैरकानूनी हैं।

14. इसका अर्थ यह हुआ कि …..’ने अपनी पत्नी पर चरित्रहीनता का झूठा आरोप लगाया है।

15. ……… ने कहा, “बेटा ! कोई ऐसा काम मत कर कि दुनिया तुम पर थूथू करे।

16. एक ……..’ ने ही मित्र को धोखा दिया है।

17. ……… ने इस बारे में क्या बताया था? और तूने परीक्षा में क्या कर दिखाया। छिः! लानत है तुमको।

18. ………. ने प्रश्न किया कि पेड़पौधे के बारे में तुम्हारा क्या विचार है?

19. ……….. ने कई फतिंगे एक साथ पकड़े।

20. ……. ने ठीक ही कहा था कि जो डर गया वह मर गया।।

कर्म कारक

जिस पर क्रिया (काम) का फल पड़े, ‘कर्म कारककहलाता है।

जैसेतालिबानियों ने पाकिस्तान को रौंद डाला।

सुन्दर लाल बहुगुना ने चिपको आन्दोलनचलाया।

इन दोनों वाक्यों में पाकिस्तानऔर चिपको आन्दोलनकर्म हैं; क्योंकि रौंद डालनाऔर चलानाक्रिया से प्रभावित हैं।

कर्म कारक का चिह्न कोहै; परन्तु जहाँ कोचिह्न नहीं रहता है, वहाँ कर्म का शून्य चिह्न माना जाता है। जैसे

वह रोटी खाता है।

भालू नाच दिखाता है।

इन वाक्यों में रोटीऔर नाचदोनों के चिह्नरहित कर्म हैं

कभीकभी वाक्यों में दोदो कर्मों का प्रयोग भी देखा जाता है, जिनमें एक मुख्य कर्म और दूसरा गौण कर्म होता है। प्रायः वस्तुबोधक को मुख्य कर्म और प्राणिबोधक को गौण कर्म माना जाता है।

जैसे

क्रिया पर कर्म का प्रभाव :

1. यदि वाक्य में कर्म चिह्नरहित (शून्य) रहे और कर्त्ता में नेलगा हो तो क्रिया कर्म के लिंगवचन के अनुसार होती है।

जैसे

कवि ने कविता सुनाई।

माँ ने रोटी खिलाई।

मैंने एक सपना देखा।

तिलक ने महान् भारत का सपना देखा था।

गुलाम अली ने एक अच्छी ग़ज़ल सुनाई थी।

बन्दर ने कई केले खाए हैं।

बच्चों ने चार खिलौने खरीदे होंगे।

2. यदि वाक्य में कर्ता और कर्म दोनों चिह्नयुक्त हों तो क्रिया सदैव पुं० एकवचन होती है।

जैसे

स्त्रियों ने पुरुषों को देखा था।

चरवाहों ने गायों को चराया होगा।

शिक्षक ने छात्राओं को पढ़ाया है।

गाँधी जी ने सत्य और अहिंसा को महत्त्व दिया है।

3. क्रिया की अनिवार्यता प्रकट करने के लिए कर्ता में नेकी जगह कोलगाया जाता है और क्रिया कर्म के लिंगवचन के अनुसार होती है।

जैसे

उस माँ को बच्चा पालना ही होगा।

अंशु को एम. ए. करना ही होगा।

नूतन को पुस्तकें खरीदनी होंगी।

4. अशक्ति प्रकट करने के लिए कर्त्ता में सेचिह्न लगाया जाता है और कर्म को चिह्नरहित। ऐसी स्थिति में क्रिया कर्म के लिंगवचन के अनुसार ही होती है।

जैसे

रामानुज से पुस्तक पढ़ी नहीं जाती।

उससे रोटी खायी नहीं जाती है।

शीला से भात खाया नहीं जाता था।

5. यदि कर्ता चिह्नयुक्त हो, पहला कर्म भी चिह्नयुक्त हो और दूसरा कर्म चिह्नरहित रहे तो क्रिया दूसरे कर्म (मुख्य कर्म) के अनुसार होती है।

जैसे

माता ने पुत्री को विदाई के समय बहुत धन दिया।

पिता ने पुत्री को पुत्र को बधाई दी।

निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करें :

माँ ने बच्चे को जगाई और कही कि नहाधोकर स्कूल के लिए तैयार हो जाओ ताकि समय .. पर स्कूल पहुँच सको और अपने पढ़ाई में लग जाओ।

पिताजी ने मुस्कराते हुए कहे कि सपूत को ऐसा ही होना चाहिए, जो सदैव इस बात के लिए चिंतित रहे कि उसके द्वारा ऐसा कोई कार्य न होने पाए जिससे पिता को सिर नीचे करना पड़े।

कवयित्री ने कविता पाठ करते हुए कही
हम ज्योंज्यों बढ़ते जाते हैं;
त्योंत्यों ही घटते जाते हैं।

सोनपुर में पशुमेला लगा था। एक किसान ने अपने छोटी बहन से कही कि मुझे दो बैल खरीदना है; तुम मेरे लिए रोटियाँ बना दो और पप्पू से कहो कि वह भी हमारे साथ चले।

सरकार ने घोषणा किया कि हम अगली पंचवर्षीय योजना में शिक्षा और कृषि को बहुत अधिक महत्त्व देंगे। कौआ की आँख तेज होती है तभी तो वह पलक झपकते बच्चा के हाथ से रोटी का टुकड़ा ले भागता है।

प्रवर ने तो रोटियाँ खायी, तुमने क्या खायी है?

एक मित्र ने अपने अन्य मित्र को बधाई दिया और कहा कि आपका बेटा परीक्षा पास किया है; मिठाई खिलाइए।

जो लोग अंधा होता है, उसे भ्रष्टाचार नहीं दिखता

गोरा चमड़ीवाले को काला पोशाक बहुत फबता है।

करण कारक

वाक्य में जिस साधन या माध्यम से क्रिया का सम्पादन होता है, उसे ही करणकारककहते हैं।

अर्थात् करण कारक साधन का काम करता है। इसका चिह्न सेहै, कहींकहीं द्वाराका प्रयोग भी किया जाता है।

जैसे

चाहो, तो इस कलम से पूरी कहानी लिख लो।

पुलिस तमाशा देखती रही और अपहर्ता बलेरो से लड़की को ले भागा।

छात्रों को पत्र के द्वारा परीक्षा की सूचना मिली।

उपर्युक्त उदाहरणों में कलम, बलेरो और पत्र करण कारक हैं।

कभीकभी वाक्य में करण का चिह्न लुप्त भी रहता है, वहाँ भ्रमित नहीं होना चाहिए, सीघे क्रिया के साधन खोजने चाहिए; जैसेकिससे या किसके द्वारा काम हुआ अथवा होता है? उदाहरण

मैं आपको आँखों देखी खबर सुना रहा हूँ। किससे देखी? आँखों से (करण)

आज भी संसार में करोड़ों लोग भूखों मर रहे हैं। (भूखोंकरण कारक)

करीम मियाँ ने दो दो जवान बेटों को अपने हाथों दफनाया। (हाथों करण कारण)

प्रेरक कर्ता कारक में भी करण का सेचिह्न देखा जाता है। जैसे

यदि शत्रुओं से तेरा नाम न जपवाऊँ तो मैं विष्णुगुप्त चाणक्य नहीं।

अहमदाबाद जाते हो तो मेरा प्रस्ताव लोगों से मनवा के छोड़ना।

क्रिया की रीति या प्रकार बताने के लिए भी सेचिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे

धीरे से बोलो, दीवार के भी कान होते हैं।

जहाँ भी रहो, खुशी से रहो, यही मेरा आशीर्वाद है।

सम्प्रदान कारक

कर्ता कारक जिसके लिए या जिस उद्देश्य के लिए क्रिया का सम्पादन करता है, वह सम्प्रदान कारकहोता है।

जैसे

मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़पीड़ितों के लिए अनाज और कपड़े बँटवाए।

इस वाक्य में बाढ़पीड़ितसम्प्रदान कारक है; क्योंकि अनाज और कपड़े बँटवाने का काम उनके लिए ही हुआ।

सम्प्रदान कारक का चिह्न कोभी है; लेकिन यह कर्म के कोकी तरह नहीं के लिएका बोध कराता है। जैसे

गृहिणी ने गरीबों को कपड़े दिए। माँ ने बच्चे को मिठाइयाँ दीं।

इन उदाहरणों में गरीबों को ……… गरीबों के लिए और बच्चे को ……… बच्चे के लिए की ओर संकेत है।

प्रथम उदाहरण में एक और बात है ……. जब कोई वस्तु किसी को हमेशाहमेशा के लिए (दान आदि अर्थ में) दी जाती है तब वहाँ कोका प्रयोग होता है जो के लिएका बोध कराता है। प्रथम उदाहरण में गरीबों को कपड़े दान में दिए गए हैं। इसलिए गरीबसम्प्रदान कारक का उदाहरण हुआ।

यदि गरीबोंकी जगह धोबीका प्रयोग किया जाय तो वहाँ को’, ‘के लिएका बोधक नहीं होगा। नमस्कार आदि के लिए भी सम्प्रदान कारक का चिह्न ही लगाया जाता है।

जैसे

पिताजी को प्रणाम। (पिताजी के लिए प्रणाम)

दादाजी को नमस्कार ! (दादाजी के लिए नमस्कार)

कोऔर के लिएके अतिरिक्त के वास्तेऔर के निमित्तका भी प्रयोग होता है।

जैसे

रावण के वास्ते ही रामावतार हुआ था। यह चावल पूजा के निमित्त है।

कोका विभिन्न रूपों में प्रयोग और भ्रम :

नीचे लिखे वाक्यों पर गौर करें

यह कविता कई भावों को प्रकट करती है।

फल को खूब पका हुआ होना चाहिए।

वे कवियों पर लगे हुए कलंक को धो डालें।

लोग नहीं चाहते थे कि वे यातनाओं को झेलें।

अब इन वाक्यों को देखें

यह कविता कई भाव प्रकट करती है।

फल खूब पका हुआ होना चाहिए।

इसी तरह उपर्युक्त वाक्यों से कोहटाकर उन्हें पढ़ें और दोनों में तुलना करें। आप पाएँगे कि कोरहित वाक्य ज्यादा सुन्दर हैं; क्योंकि इन वाक्यों में कोका अनावश्यक प्रयोग हुआ है।

कुछ वाक्यों में कोके प्रयोग से या तो अर्थ ही बदल जाता है या फिर वह बहुत ही भ्रामक हो जाता है। नीचे लिखे वाक्यों को देखें

प्रकृति ने रात्रि को विश्राम के लिए बनाया है।

भ्रामक भाव– (प्रकृति ने रात्रि इसलिए बनाई है कि वह विश्राम करे)

प्रकृति ने रात्रि विश्राम के लिए बनाई है।

सामान्य भाव–(प्रकृति ने रात्रि जीवजन्तुओं के विश्राम के लिए बनाई है)

कुछ लोग पर’, ‘से’, ‘के लिएऔर के हाथके स्थान पर भी कोका प्रयोग कर बैठते हैं।

नीचे लिखे वाक्यों में कोकी जगह उपर्युक्त चिह्न लगाएँ

1. वह इस व्याकरण की असलियत हिन्दी जगत् को प्रकट कर दे।

2. वह प्रत्येक प्रश्न को वैज्ञानिक ढंग पर विश्लेषण करने का पक्षपाती था।

3. इनको इन्कार कर वह स्वराज्य क्या खाक लेगा।

4. उनको समझौते की इच्छा थी।

5. सरकारी एजेंटों को तुम अपना माल मत बेचो।

6. स्त्री को स्त्रीसंज्ञा देकर पुरुष को छुटकारा नहीं।

7. मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूँ जो आपको अधिकारपूर्वक कह सकूँ।

8. मैं अध्यक्ष को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने को निवेदन करता हूँ।

9. भारतीयों के आन्दोलन को जोरदार समर्थन प्राप्त था।

10. उन्होंने भवन की कार्रवाई को देखा था।

11. उस पुस्तक को तो मैंने यों ही रहने दी।

12. वे सन्तान को लेकर दुःखी थे।

13. वह खेल को लेकर व्यस्त था।

14. इस विषय को लेकर दोनों राष्ट्रों में बहुत मतभेद है।

अब कोके प्रयोग संबंधी कुछ नियमों पर विचार करें :

1. जहाँ कर्म अनुक्त रहे वहाँ कोका प्रयोग करना चाहिए। जैसे

बन्दर आमों को बड़े चाव से खाता है।

खगोलशास्त्री तारों को देख रहे हैं।

कुछ राजनेताओं ने ब्राह्मणों को बहुत सताया है।

2. व्यक्तिवाचक, अधिकारवाचक और व्यापार कर्तृवाचक में कोका प्रयोग किया जाता है। जैसे

मेघा को पढ़ने दो।

फैक्ट्री के मालिक को समझाना चाहिए।

अपने सिपाही को बुलाओ।

वह अपने नौकर को कभीकभी मारता भी है।

3. गौण कर्म या सम्प्रदान कारक में कोका प्रयोग होता है। जैसे

पूतना कृष्ण को दूध पिलाने लगी।

मैंने उसको पुस्तक खरीद दी। (उसके लिए)

उसने भूखों को अन्न और नंगों को वस्त्र दिए।

4. आना, छजना, पचना, पड़ना, भाना, मिलना, रुचना, लगना, शोभना, सुहाना, सूझना, होना और चाहिए इत्यादि के योग में कोका प्रयोग होता है।

जैसे

उन्हें याद आती है, आपकी प्रेरक बातें।

उसको भोजन नहीं पचता है।

दिल को कल क्या पड़ी, बात ही बिगड़ गई।

उसको क्या पड़ा है, बिगड़ता तो मेरा है न।

दशरथ को राम के बिछोह में कुछ नहीं भाता था।

मजदूरों को उनका स्वत्व कब मिलेगा?

बच्चों को मिठाई बहुत रुचती है।

5. निमित्त, आवश्यकता और अवस्था द्योतन में कोका प्रयोग होता है।

जैसे

राम शबरी से मिलने को आए थे।

पिताजी स्नान को गए हैं।

अब मुझको पढ़ने जाना है।

उनको यहाँ फिरफिर आना होगा। 6. योग्य, उपयुक्त, उचित, आवश्यक, नमस्कार, धिक्कार और धन्यवाद के योग में कोका प्रयोग होता है। जैसे

स्वच्छ वायुसेवन आपको उपयोगी होगा। विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य रखना उचित है। मुझको वहाँ जाना आवश्यक है। श्री गणेश को नमस्कार। आज भी पापी को धिक्कार है।

इस सहयोग के लिए आपको बहुतबहुत धन्यवाद।

7. समय, स्थान और विनिमयद्योतक में कोका प्रयोग होता है।

जैसे

पंजाब मेल भोर को आएगी।

वह घोड़ा कितने को दोगे?

कल रात को अच्छी वर्षा हुई थी।

नोट : ऐसी जगहों पर मेंऔर परका भी प्रयोग होता है।

8. समाना, चढ़ना, खुलना, लगाना, होना, डरना, कहना और पूछना क्रियाओं के योग में भी कोका प्रयोग होता है। जैसे

आपको भूत समाया है जो ऐसीवैसी हरकतें कर रहे हैं।

उस विद्यार्थी को पढ़ाई का भूत चढ़ा है।

वह किसी काम का नहीं, उसको आग लगाओ।

तुमको एक बात कहता हूँ, किसी से मत कहना।

नोट : होनाक्रिया के साथ अस्तित्व अर्थ में कोके बदले केभी लाया जाता है।

सुधीर जी के पुत्र हुआ है।

उसके दाढ़ी नहीं है।

चली थी बर्थी किसी पर,

किसी के आन लगी।

9. निम्नलिखित अवस्थाओं में कोप्रायः लुप्त रहता है; परन्तु विशेष अर्थ में स्वराघात के बदले कहींकहीं आता भी है, छोटेछोटे जीवों एवं अप्राणिवाचक संज्ञाओं के साथ। जैसे

उसने बिल्ली मारी है।

किधर तुम छोड़कर मुझको सिधारे, हे राम! ……मगर एक जुगनू चमकते जो देखा मैंने.. ……..

वह सुबह आया है।

अपादान कारक

वाक्य में जिस स्थान या वस्तु से किसी व्यक्ति या वस्तु की पृथकता अथवा तुलना का बोध होता है, वहाँ अपादान कारक होता है।

यानी अपादान कारक से जुदाई या विलगाव का बोध होता है। प्रेम, घृणा, लज्जा, ईर्ष्या, भय और सीखने आदि भावों की अभिव्यक्ति के लिए अपादान कारक का ही प्रयोग किया जाता है; क्योंकि उक्त कारणों से अलग होने की क्रिया किसीकिसी रूप में जरूर होती है। जैसे

पतझड़ में पीपल और ढाक के पेड़ों से पत्ते झड़ने लगते हैं।

वह अभी तक हैदराबाद से नहीं लौटा है। मेरा घर शहर से दूर है।

उसकी बहन मुझसे लजाती है।

खरगोश बाघ से बहुत डरता है।

नूतन को गंदगी से बहुत घृणा है।

हमें अपने पड़ोसी से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।

मैं आज से पढ़ने जाऊँगा।

सेका प्रयोग

सेचिह्न करणएवं अपादानदोनों कारकों का है; किन्तु प्रयोग में काफी अंतर है। करण कारक का सेमाध्यम या साधन के लिए प्रयुक्त होता है, जबकि अपादान का सेजुदाई या अलग होने या करने का बोध कराता है। करण का सेसाधन से जुड़ा रहता है।

जैसे

वह कलम से लिखता है। (साधन)

उसके हाथ से कलम गिर गई। (हाथ से अलग होना)

1. अनुक्त और प्रेरक कर्ता कारक में सेका प्रयोग होता है

जैसे

मुझसे रोटी खायी जाती है। (मेरे द्वारा)

आपसे ग्रंथ पढ़ा गया था। (आपके द्वारा)

मुझसे सोया नहीं जाता।

वह मुझसे पत्र लिखवाती है।

2. क्रिया करने की रीति या प्रकार बताने में भी सेका प्रयोग होता है। जैसे

धीरे (से) बोलो, कोई सुन लेगा।

जहाँ भी रहो, खुशी से रहो।

3. मूल्यवाचक संज्ञा और प्रकृति बोध में सेका प्रयोग देखा जाता है। जैसे

कल्याण कंचन से मोल नहीं ले सकते हो।

छूने से गर्मी मालूम होती है।

वह देखने से संत जान पड़ता है।

4. कारण, साथ, द्वारा, चिह्न, विकार, उत्पत्ति और निषेध में भी सेका प्रयोग होता है। जैसे

आलस्य से वह समय पर न आ सका।

दया से उसका हृदय मोम हो गया।

गर्मी से उसका चेहरा तमतमाया हुआ था।

जल में रहकर मगर से बैर रखना अच्छी बात नहीं।

वह एक आँख से काना और एक पाँव से लँगड़ा जो ठहरा।

आपसेआप कुछ भी नहीं होता, मेहनत करो, मेहनत।

दौड़धूप से नौकरी नहीं मिलती, रिश्वत के लिए भी तैयार रहो।

5. अपवाद (विभाग) में सेका प्रयोग अपादान के लिए होता है।

जैसे

वह ऐसे गिरा मानो आकाश से तारे।

वह नजरों से ऐसे गिरा, जैसे पेड़ से पत्ते।

6. पूछना, दुहना, जाँचना, कहना, पकाना आदि क्रियाओं के गौण कर्म में सेका प्रयोग होता है।

जैसे

मैं आपसे पूछता हूँ, वहाँ क्याक्या सुना है?

भिखारी धनी से कहीं जाँचता तो नहीं है?

मैं आपसे कई बार कह चुकी हूँ।

बाबर्ची चावल से भात पकाता है।

7. मित्रता, परिचय, अपेक्षा, आरंभ, परे, बाहर, रहित, हीन, दूर, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, अतिरिक्त, लज्जा, बचाव, डर, निकालना इत्यादि शब्दों के योग में सेका प्रयोग देखा जाता है।

जैसे

संजय भांद्रा अपने सभी भाइयों से अलग है।

उनको इन सिद्धांतों से अच्छा परिचय है।

धन से कोई श्रेष्ठ नहीं होता, विद्या से होता है।

बुद्धिमान शत्रु बुद्धिहीन मित्रों से कहीं अच्छा होता है।

मानव से तो कुत्ता भला जो कमसेकम गद्दारी तो नहीं करता।

घर से बाहर तक खोज डाला, कहीं नहीं मिला।

विद्या और बुद्धि से हीन मानव पशु से भी बदतर है।

अभी भी मँझधार से किनारा दूर है।

यदि मैं पोल खोल दूं तो तुम्हें दोस्तों से भी शर्माना पड़ेगा।

भला मैं तुमसे क्यों डरूँ, तुम कोई बाघ हो जो खा जाओगे।

अन्य लोगों को मैदान से बाहर निकाल दीजिए तभी मैच देखने का आनंद मिलेगा।

8. स्थान और समय की दूरी बताने में भी सेका प्रयोग होता है।

जैसे

अभी भी गरीबों से दिल्ली दूर है।

आज से कितने दिन बाद आपका आगमन होगा?

9. क्रियाविशेषण के साथ भी सेका प्रयोग होता है।

जैसे

आप कहाँ से टपक पड़े भाई जान?

किधर से आगमन हो रहा है श्रीमान का?

10. पूर्वकालिक क्रिया के अर्थ में भी सेका प्रयोग होता है।

जैसे

उसने पेड़ से बंदूक चलाई थी। – (पेड़ पर चढ़कर)

कोठे से देखो तो सब कुछ दिख जाएगा। – (कोठे पर चढ़कर)

कुछ स्थलों पर सेलुप्त रहता है

जैसे

बच्चा घुटनों चलता है।

खिल गई मेरे दिल की कली आपहीआप।

आपके सहारे ही तो मेरे दिन कटते हैं।

साँपजैसे प्राणी पेट के बल चलते हैं।

दूधो नहाओ, पूतो फलो। किसके मुँह खबर भेजी आपने?

इस बात पर मैं तुम्हें जूते मारता।

आप हमेशा इस तरह क्यों बोलते हैं?

संबंध कारक

वाक्य में जिस पद से किसी वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ का दूसरे व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ से संबंध प्रकट हो, ‘संबंध कारककहलाता है।

जैसे

अंशु की बहन आशु है।

यहाँ अंशुसंबंध कारक है।

यों तो संबंध और संबोधन को कारक माना ही नहीं जाना चाहिए, क्योंकि इसका संबंध क्रिया से किसी रूप में नहीं होता। हाँ, कर्ता से अवश्य रहता है।

जैसे

भीम के पुत्र घटोत्कच ने कौरवों के दाँत खट्टे कर दिए।

उक्त उदाहरण में हम देखते हैं कि क्रिया की उत्पत्ति में अन्य कारकों की तरह संबंध सक्रिय नहीं है।

फिर भी, परंपरागत रूप से संबंध को कारक के भेदों में गिना जाता रहा है। इसका एकमात्र चिह्न काहै, जो लिंग और वचन से प्रभावित होकर कीऔर केबन जाता है। इन उदाहरणों को देखें

गंगा का पुत्र भीष्म बाण चलाने में बड़ेबड़ों के कान काटते थे।

नदी के किनारेकिनारे वनविभाग ने पेड़ लगवाए।

मेनका की पुत्री शकुन्तला भरत की माँ बनी।

जब सर्वनाम पर संबंध कारक का प्रभाव पड़ता है, तब नानेनीऔर रारेरीहो जाता है।

जैसे

अपने दही को कौन खट्टा कहता है?

मेरे पुत्र और तेरी पुत्री का जीवन सुखमय हो सकता है।

संबंध कारक के चिह्नों के प्रयोग से कई स्थलों पर अर्थभेद भी हो जाया करता है।

निम्नलिखित उदाहरण देखें

उसके बहन नहीं है। – (उसको बहन नहीं है)

उसकी बहन नहीं है। – (यानी दूसरे की बहन है, उसकी नहीं)

काकेकीका प्रयोग

सम्पूर्णता, मूल्य, समय, परिमाण, व्यक्ति, अवस्था, दर, बदला, केवल, स्थान, प्रकार, योग्यता, शक्ति, साथ, भविष्य, कारण, आधार, निश्चय, भाव, लक्षण, शीघ्रता आदि के लिए संबंध कारक के चिह्नों का प्रयोग होता है।

जैसे

सात रुपये की थाली, नाचे घरवाली। (लोकोक्ति)

एक हाथ का साँप, फिर भी बापरेबाप !

चार दिनों की चाँदनी फिर अँधरी रात।

राजा का रंक राई का पर्वत।

सबकेसब चले गए रह गए केवल तुम। – (शिवमंगल सिंह सुमन)

अचंभे की बात सुनने योग्य ही होती है।

अब यह विपत्ति की घड़ी टलनेवाली ही है।

राह का थका बटोही गहरी नींद सोता है।

आज भी दूधकादूध और पानीकापानी होता है।

दिन का सोना और रात का करवटें बदलना कभी अच्छा नहीं होता।

बात की बात में बात निकल आती है।

तुल्य, अधीन, समीप और आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, बाहर, बायाँ, दायाँ, योग्य अनुसार, प्रति, साथ आदि शब्दों के योग में भी संबंध के चिह्न आते हैं।

जैसे

मेरे पीछे मेरा पूरा कुनबा है।

फल सर्वदा कर्म के अधीन रहा है।

नदी की ओर बढ़ो, वह तुम्हें मिल जाएगा।

सोनिया काँग्रेस का दायाँ हाथ है।

पति के साथ क्या तुम खुश हो?

तुम्हें माता कब की पुकार रही है। – (तुम्हें माता कब से पुकार रही है।)

यदि विशेष्य उपमान हो तो उपमेय में संबंध का चिह्न प्रयुक्त होगा। जैसे

वह दया का सागर है।

प्रेम का बंधन बड़ा मजबूत होता है।

कर्म की फाँस कभी गलफाँस नहीं होती, जनाब!

कभीकभी गौण कर्म में भी संबंध का चिह्न आता है।

जैसे

कोई गधा तुम्हारे लात मारे।

उन शब्दों के योग में भी संबंधचिह्न आता है जो कृदंतीय शब्दों के कर्ता या कर्म के अर्थों में आ सके।

जैसे

मुझे तो लगता है कि तुम उसी के आने से भागे जाते हो।

क्या हुआ जग के रूठे से?

खिचड़ी के खाते ही लगा जी मिचलाने।

नोट : कहींकहीं संबंधी लुप्त रहता है।

जैसे

तुम सबकी सुन लेते हो अपनी कहाँ कहते हो।

मन की मन ही माँझ रही। – (सूरदास)

यह कभी नहीं होने का है।

मैं तेरी नहीं सुनूँगा।

अधिकरण कारक

वाक्य में क्रिया का आधार, आश्रय, समय या शर्त अधिकरणकहलाता है।

आधार को ही अधिकरण माना गया है। यह आधार तीन तरह का होता हैस्थानाधार, समयाधार और भावाधार। जब कोई स्थानवाची शब्द क्रिया का आधार बने तब वहाँ स्थानाधिकरण होता है। जैसे

बन्दर पेड़ पर रहता है।

चिड़ियाँ पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती हैं।

मछलियाँ जल में रहती हैं।

मनुष्य अपने घर में भी सुरक्षित कहाँ रहता है।

जब कोई कालवाची शब्द क्रिया का आधार हो तब वहाँ कालाधिकरण होता है।

जैसे

मैं अभी दो मिनटों में आता हूँ।

जब कोई क्रिया ही क्रिया के आधार का काम करे, तब वहाँ भावाधिकरण होता है।

जैसे

शरद पढ़ने में तेज है।

राजलक्ष्मी दौड़ने में तेज है।

कहींकहीं अधिकरण कारक के चिह्न (में, पर) लुप्त भी रहते हैं।

जैसे

आजकल वह राँची रहता है।

मैं जल्द ही आपके दफ्तर पहुँच रहा हूँ।

ईश्वर करे. आपके घर मोती बरसे।

कहींकहीं अधिकरण का चिह्न रहने पर भी वहाँ अन्य कारक होते हैं।

जैसे

आजकल के नेता लोग रुपयों पर बिकते हैं। – (रुपयों के लिएभाव है)

मेंऔर परका प्रयोग

1. निर्धारण, कारण, भीतर, भेद, मूल्य, विरोध, अवस्था और द्वारा अर्थ में अधिकरण का चिह्न आता है।

जैसे

स्थलीय जीवों में हाथी सबसे बड़ा पशु है।

पहाड़ों में हिमालय सबसे बड़ा और ऊँचा है।

पाकिस्तान और तालिबान में कोई फर्क नहीं है।

2. अनुसार, सातत्य, दूरी, ऊपर, संलग्न और अनंतर के अर्थों में और वार्तालाप के प्रसंग में परचिह्न का प्रयोग होता है।

जैसे

नियत समय पर काम करो और उसका मीठा फल खाओ।

घोड़े पर चढ़नेवाला हर कोई घुड़सवार नहीं हो जाता।

यहाँ से पाँच किलोमीटर पर गंगा बहती है।

इस पर वह क्रोध से बोला और चलते बना .

मैं पत्रपरपत्र भेजता रहा और तुम चुपचाप बैठे रहे।

3. गत्यर्थक धातुओं के साथ मेंऔर परदोनों आते हैं।

जैसे

वह डेरे पर गया होगा।

मैं आपकी शरण में आया हूँ।

उक्त वाक्यों का वैकल्पिक रूप है।

वह डेरे को गया होगा।

मैं आपकी शरण को आया हूँ।

निम्नलिखित वाक्यों में मेंकी जगह परलिखें, क्योंकि इनमें मेंभद्दा लग रहा है

1. उसकी दृष्टि चित्र में गड़ी है।

2. वह पुस्तक में आँखें गाड़े है।

3. कन्या की हत्या में उन्हें आजीवन जेल हुई।

4. नाजायज शराब में मुरारि की गिरफ्तारी हुई।

5. हमारी भाषा में अंग्रेजी का बड़ा प्रभाव है।

6. उनकी माँग में सभी लोगों की सहानुभूति है।

7. भ्वाइस ऑफ अमरीका में यह समाचार बताया गया है।

8. सड़क में भारी भीड़ थी।

9. उस स्थान में पहले से कई व्यक्ति मौजूद थे।

10. उन्होंने सेठ के चरणों में पगड़ी रख दी।

संबोधन कारक

जिस संज्ञापद से किसी को पुकारने, सावधान करने अथवा संबोधित करने का बोध हो, ‘संबोधनकारक कहते हैं।

संबोधन प्रायः कर्ता का ही होता है, इसीलिए संस्कृत में स्वतंत्र कारक नहीं माना गया है। संबोधित संज्ञाओं में बहुवचन का नियम लागू नहीं होता और सर्वनामों का कोई संबोधन नहीं होता, सिर्फ संज्ञा पदों का ही होता है।

नीचे लिखे वाक्यों को देखें

भाइयो एवं बहनो! इस सभा में पधारे मेरे सहयोगियो ! मेरा अभिवादन स्वीकार करें। हे भगवान् ! इस सड़ी गर्मी में भी लोग कैसे जी रहे हैं।

बच्चो ! बिजली के तार को मत छूना।

देवियो और सज्जनो ! इस गाँव में आपका स्वागत है।

नोट : सिर्फ संबोधन कारक का चिह्न संबोधित संज्ञा के पहले आता है।

संज्ञा एवं सर्वनाम पदों की रूप रचना

उल्लेखनीय है कि संज्ञा और सर्वनाम विकारी होते हैं और इसके रूप लिंगवचन तथा कारक के कारण परिवर्तित होते रहते हैं। नीचे कुछ संज्ञाओं एवं सर्वनामों के रूप दिए जा रहे हैं

1. अकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : फूल

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन

(०/ने) कर्ता फूल/फूल ने फूल/फूलों ने

(०/को) कर्म फूल/फूल को फूलों को

(से/द्वारा) करण फूल/फूल से/ के द्वारा फूलों से/ के द्वारा

(को के लिए) सम्प्रदान फूल को/ के लिए फूलों को/ के लिए

(से) अपादान फूल से फूलों से

(काकेकी) संबंध फूल का/के/की फूलों का/ के की

(में पर) अधिकरण फूल में/पर फूलों में/ पर

(हे/हो अरे) संबोधन हे फूल ! हे फूलो !

2. अकारान्त स्त्री० संज्ञा : बहन

कारक (परसगी एकवचन बहुवचन

(०/ने) कर्ता बहन/बहन ने बहनें/बहनों ने

(०/को) कर्म बहन/बहन को बहनों को

(से/द्वारा) करण बहन से/के द्वारा बहनों से/ के द्वारा

(को/के लिए) सम्प्रदान बहन को/ के लिए बहनों को/के लिए

(से) अपादान बहन से बहनों से

(काकेकी) संबंध बहन का/ केकी बहनों का/ केकी

(में/पर) अधिकरण बहन में/ पर बहनों में पर

(हे/हो…) संबोधन हे बहन ! हे बहनो !

3. अकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : लड़का

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन

(०/ने) कर्ता लड़का/लड़के ने लड़के/लड़कों ने

(०/को) कर्म लड़के को लड़कों को

(से/द्वारा) करण लड़के से/के द्वारा लड़कों से/के द्वारा

(को/के लिए) सम्प्रदान लड़के को/के लिए लड़कों को/ के लिए

(से) अपादान लड़के से लड़कों से

(काकेकी) संबंध लड़के का/के की लड़कों का/ केकी

(में/पर) अधिकरण लड़के में/पर लड़कों में/पर

(हे/हो/…) संबोधन हे लड़के ! हे लड़को !

4. अकारान्त स्त्री० संज्ञा : माता

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन

(०/ने) कर्ता माता/माता ने माताएँ/माताओं ने

(०/को) कर्म माता/माता को माताओं को

(से/द्वारा) करण माता से/के द्वारा माताओं से/के द्वारा

(को/के लिए) सम्प्रदान माता को/के लिए माताओं को के लिए

(से) अपादान माता से माताओं से

(काकेकी) संबंध माता का/के/की माताओं का/के की

(में/पर) अधिकरण माता में/पर माताओं में/पर

(हे/हो/…) संबोधन हे माता ! हे माताओ !

5. इकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : कवि

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन

(०/ने) कर्ता कवि/कवि ने कवि/कवि ने

(०/क) कर्म कवि/कवियों ने कवि/कवि को कवि/कवियों ने कवि/कवि को

(से/द्वारा) करण कवि/कवियों को कवि से/के द्वारा कवि/कवियों को कवि से/के द्वारा

(को/के लिए) सम्प्रदान कवियों से/के द्वारा कवि को/के लिए कवियों से/के द्वारा कवि को/के लिए

(से) अपादान कवियों को/के लिए कवि से कवियों को/के लिए कवि से

(काकेकी) संबंध कवियों से कवि का/के की कवियों से कवि का/के की

(में/पर) अधिकरण कवियों का/के/की कवि में/पर कवियों का/के/की कवि में/पर

(हे/हो/…) संबोधन – – कवियों में/पर हे कवि ! हे कवियो !

6. इकारान्त स्त्री संज्ञा : शक्ति

कारक (परसम) एकवचन बहुवचन

(०/ने) कर्ता शक्ति/शक्ति ने शक्तियों ने/शक्तियाँ

(०/को) कर्म शक्ति/शक्ति को शक्तियों को/शक्तियाँ

(से/द्वारा) करण शक्ति से/के द्वारा शक्तियों से/के द्वारा

(को/के लिए) सम्प्रदान शक्ति को/के लिए शक्तियों को/के लिए

(से) अपादान शक्ति से शक्तियों से

(काकेकी) संबंध शक्ति का/के की शक्तियों का/के की

(में/पर) अधिकरण शक्ति में/पर शक्तियों में/पर

(हे/हो…) संबोधन हे शक्ति ! हे शक्तियो !

7. ईकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : धोबी

एकवचन में सभी रूप : धोबी ने / को से / के द्वारा को के लिए / से / का के। की / में पर हे धोबी !

बहुवचन में सभी रूप : धोबियों ने को / से के द्वारा / को के लिए से का के की / में पर हे धोबियो !

8. ईकारान्त स्त्री संज्ञा : बेटी

एकवचन बहुवचन

(०/ने) कर्ता बेटी ने/बेटी बेटियाँ/बेटियों ने

(०/को) कर्म बेटी को बेटियों को

(से/द्वारा) करण बेटी से/के द्वाराबेटियों से/के द्वारा

(को/के लिए) सम्प्रदान बेटी को/के लिए बेटियों को/के लिए

(से) अपादान बेटी से बेटियों से

(काकेकी) संबंध बेटी का/के/की बेटियों का/के/की

(में/पर) अधिकरण बेटी में/पर बेटियों में पर

(हे/अरी) संबोधन अरी बेटी ! अरी बेटियो !

9. उकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : साधुएकवचन में सभी रूप : साधु ने / को से के द्वारा को के लिए से का के की में पर / हे साधु !

बहुवचन में सभी रूप : साधुओं ने / को से के द्वारा को के लिए / से का के। की। में पर हे साधुओ!

10. उकारान्त स्त्री संज्ञा : वस्तु

कारक (परसग) एकवचन बहुवचन

(०/ने) कर्ता वस्तु/वस्तु ने वस्तुएँ/वस्तुओं ने

(०/को) कर्म वस्तु/वस्तु को वस्तुओं को

(से/द्वारा) करण वस्तु से/के द्वारा वस्तुओं को/के द्वारा

(को/के लिए) सम्प्रदान वस्तु को/के लिएवस्तुओं को/के लिए

(से) अपादान वस्तु से वस्तुओं से

(काकेकी) संबंध वस्तु का/के/की वस्तुओं का/के/की

(में/पर) अधिकरण वस्तु में/पर वस्तुओं में/पर

(हे/हो/अरी) संबोधन अरी वस्तु !अरी वस्तुओ !

11. ऊकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : भालूएकवचन में सभी : भालू ने / को / से / के द्वारा / को के लिए / से का / के की। में पर हे भालू !

बहुवचन में सभी : साधुओं ने को / से के द्वारा को के लिए से का / के की / में पर हे साधुओ !

12. ऊकारान्त स्त्री संज्ञा : बहू

कारक (परसगी) एकवचन बहुवचन

(०/ने) कर्ता बहू ने/बहू बहुएँ/बहुओं ने

(०/को) कर्म बहू को बहू बहुएँ/बहुओं को

(से/द्वारा) करण बहू से/के द्वारा बहुओं से के द्वारा

(को/के लिए) सम्प्रदान बहू को/के लिए बहुओं को/के लिए

(से) अपादान बहू से बहुओं से

(काकेकी) संबंध बहू का/के की बहुओं का/के/की

(में/पर) अधिकरण बहू में/पर बहुओं में/पर

(अरी/हे…) संबोधन हे बहू ! हे बहुओ !

13. ‘मैंसर्वनाम का रूप

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन

(०/ने) कर्ता मैं/मैंने हम/हमने

(०/को) कर्म मुझे/मुझको हमें हमको

(से/द्वारा) करण मुझसे/मेरे द्वारा हमें हमारे द्वारा

(को/के लिए) सम्प्रदान मुझको/मेरे लिए हमको/हमारे लिए

(से) अपादान मुझसे हमसे

(काकेकी) संबंध मेरा/मेरे/मेरी हमारा/हमारे हमारी

(में/पर) अधिकरण मुझ में/मुझ पर हम में/हम पर

(हे/हो/अरे) संबोधन – x – x

इसी तरह अन्य सर्वनामों के रूप देखें :

तू + ने – :तूने वह + ने – :उसने/उन्होंने

तू + को – :तुझको यह + को – :इसको/इसे/इनको

तू + रा/रे/री – :तेरा/तेरे/तेरी यह + में – :इसमें इनमें

तू + में – :तुझमें कोई – :सभी कारकचिह्ण के साथ किसी

तुम + ने – :तुमने कुछ – :सभी चिह्नों के साथ अपरिवर्तित

तु + को – :तुमको/तुम्हें कौन + ने – :किसने

तुम + रा/रे/री – :तुम्हारा/तुम्हारे तुम्हारी कौन + को – :किसे/किसको

वह + ने – :उसने/उन्होंने जो – :जिस/जिनके रूप में परिवर्तित

वह + का/के की – :उसका/उसके उसकी/उनका/उनमें उनकी

वह + में – :उसमें/उनमें

1. ‘राम अयोध्या से वन को गए। इस वाक्य में सेकिस कारक का बोधक है?

(a) करण

(b) कर्ता

(c) अपादान

उत्तर :

(c) अपादान

2. ‘मछली पानी में रहती हैइस वाक्य में किस कारक का चिह्न प्रयुक्त हुआ है?

(a) संबंध

(b) कर्म

(c) अधिकरण

उत्तर :

(c) अधिकरण

3. ‘राधा कृष्ण की प्रेमिका थीइस वाक्य में कीचिह्न किस कारक की ओर संकेत करता है?

(a) करण

(b) संबंध

(c) कर्ता

उत्तर :

(b) संबंध

4. ‘गरीबों को दान दो’ ‘गरीबकिस कारक का उदाहरण है?

(a) कर्म

(b) करण

(c) सम्प्रदान

उत्तर :

(c) सम्प्रदान

5. ‘बालक छुरी से खेलता हैछुरी किस कारक की ओर संकेत करता है?

(a) करण

(b) अपादान

(c) सम्प्रदान

उत्तर :

(a) करण

6. सम्प्रदान कारक का चिह्न किस वाक्य में प्रयुक्त हुआ है?

(a) वह फूलों को बेचता है।

(b) उसने ब्राह्मण को बहुत सताया था।

(c) प्यासे को पानी देना चाहिए।

उत्तर :

(c) प्यासे को पानी देना चाहिए।

7. इन वाक्यों में से किसमें करण कारक का चिह्न प्रयुक्त हुआ है?

(a) लड़की घर से निकलने लगी है

(b) बच्चे पेंसिल से लिखते हैं

(c) पहाड़ से नदियों निकली हैं

उत्तर :

(b) बच्चे पेंसिल से लिखते हैं

8. किस वाक्य में कर्मकारक का चिह्न आया है?

(a) मोहन को खाने दो

(b) पिता ने पुत्र को बुलाया

(c) सेठ ने नंगों को वस्त्र दिए

उत्तर :

(b) पिता ने पुत्र को बुलाया

9. अपादान कारक किस वाक्य में आया है?

(a) हिमालय पहाड़ सबसे ऊँचा है

(b) वह जाति से वैश्य है

(c) लड़का छत से कूद पड़ा था

उत्तर :

(c) लड़का छत से कूद पड़ा था

10. इनमें से किस वाक्य में सेचिह्न कर्ता के साथ है?

(a) वह पानी से खेलता है

(b) मुझसे चला नहीं जाता

(c) पेड़ से पत्ते गिरते हैं

उत्तर :

(b) मुझसे चला नहीं जाता