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Kavya gun/kavita ke kavya gun kya hotey hai/Kavya shastr hindi/काव्य गुण/काव्य गुण क्या होते है/काव्य शास्त्र |
काव्य-गुण - काव्य में
चमत्कार, प्रवाह
एवं प्रभाव
उत्पन्न करने
वाले तत्व
काव्य-गुण
कहलाते हैं।
इस प्रकार
काव्य के
सौंदर्य एवं
अभिव्यंजना शक्ति
को बढ़ाने
वाले सभी
तत्वों को
काव्य-गुण
कहा जाता
है।
काव्य
के दो
पक्ष माने
गए हैं
- भाव पक्ष
और कला
पक्ष। भाव-पक्ष
का संबंध
काव्य के
अंतर्जगत से
होता है
तथा कला-पक्ष
का संबंध
काव्य के
बाह्य पक्ष
से। इसलिए
भाव को
काव्य की
आत्मा एवं
एवं कला-पक्ष
को काव्य
का शरीर
कहा जाता
है। काव्य-गुण
का संबंध
इन दोनों
पक्षों से
है। यद्यपि
कुछ आचार्य
इनका संबंध
केवल काव्य
के बाह्य
पक्ष से
तथा कुछ
केवल आंतरिक
पक्ष से
मानते हैं, लेकिन
आज लगभग
सभी विद्वान
काव्य-गुणों
का संबंध
काव्य बाह्य
रूप के
साथ-साथ
उसकी आंतरिक
रूप, भाव-पक्ष
एवं रस
से भी
मानते हैं।
.
काव्य-गुणों की
संख्या-
काव्य-गुणों की
संख्या कितनी
है, इस
विषय में
आचार्यों में
मतभेद रहा
है। इस
संबंध में
भारतीय काव्यशास्त्र
में मुख्य
रूप से
पांच मत
मिलते हैं।
आचार्य भरतमुनि, दंडी, वामन
आदि आचार्य
गुणों की
संख्या दस
स्वीकार करते
हैं। आचार्य
आनन्दवर्धन, मम्मट, विश्वनाथ
तथा जगन्नाथ
गुणों की
संख्या तीन
बताते हैं।
आचार्य कुंतक
का कहना
है कि
काव्य गुण
छ: हैं।
आचार्य भोजराज
एवं विद्यानाथ
का मानना
है कि
काव्य-गुणों
की संख्या
24
है। आचार्य
हेमचंद्र ने
गुणों की
संख्या पांच
मानी है।
लेकिन
आज लगभग
सभी विद्वानों
ने काव्य-गुणों
की संख्या
के संबंध
में आचार्य
मम्मट एवं
आचार्य आनन्दवर्धन
के दृष्टिकोण
को स्वीकार
कर लिया
है तथा
प्रसाद-गुण, ओज-गुण
एवं माधुर्य-गुण
इन तीनों
को ही
काव्य-गुणों
के रूप
में मान्यता
मिल गई
है।
काव्य-गुण
मुख्य रूप
से तीन
प्रकार के
होते हैं -
1. प्रसाद-गुण
2. माधुर्य-गुण
3. ओज-गुण
1. प्रसाद-गुण - प्रसाद का
शाब्दिक अर्थ
है - निर्मलता, प्रसन्नता।
प्रसाद गुण
काव्य के
उस तत्व
को कहा
जाता है, जिससे
कोई काव्य
पढ़ते या
सुनते ही
समझ में
आ जाए।
जिस प्रकार
सूखे ईंधन
में अग्नि
तुरंत प्रज्वलित
हो जाती
है, उसी
प्रकार प्रसाद-गुण
संपन्न काव्य
भी तुरंत
समझ में
आ जाता
है।
प्रसाद-गुण
स्वच्छ पात्र
में भरे
जल की
भांति है
जिसमें सब
कुछ और
आर पार
दिखाई देता
है।
प्रसाद
गुण सरल
एवं सुबोध
पदों द्वारा
आता है
इसलिए सभी
सरल एवं
सुबोध रचनाएं
प्रसाद गुण
संपन्न होती
हैं।
प्रसाद
गुण सभी
प्रकार के
रसों और
सभी प्रकार
की रचनाओं
में रह
सकता है
क्योंकि सरल
सुबोध शब्दावली
में किसी
भी प्रकार
की बात
कहीं जा
सकती है।
हिंदी साहित्य
में कवि
के रूप
में मैथिलीशरण
गुप्त की
रचनाएँ एवं
कथाकार के
रूप में
मुंशी प्रेमचंद
की रचनाएँ
प्रसाद-गुण
संपन्न रचनाएं
कही जा
सकती है।
अनेक छायावादी
कवियों ने
भी प्रसाद-गुण
संपन्न कविताएं
रची हैं।
कबीर और
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जैसे
कवियों का
काव्य प्रसाद-गुण
युक्त अर्थात
सरल भाषा
के प्रयोग
के कारण
सीधा जन-मानस
के हृदय
में उतर
जाता है।
उदाहरण-1
हे
प्रभो ज्ञान
दाता ! ज्ञान
हमको दीजिए।
शीघ्र
सारे दुर्गुणों
को दूर
हमसे कीजिए।
उदाहरण-2
विस्तृत
नभ का
कोई कोना,
मेरा
न कभी
अपना होना।
परिचय
इतना इतिहास
यही ,
उमड़ी
कल थी
मिट आज
चली।।
2. माधुर्य
गुण - किसी
काव्य को
पढ़ने या
सुनने से
ह्रदय में
जहाँ मधुरता
का संचार
होता है, वहाँ
माधुर्य गुण
होता है।
यह वह
गुण है
जिसको सुनकर
सुनने वाले
का अंत:करण
द्रवित हो
उठता है।
यह गुण
विशेष रूप
से श्रृंगार
(संयोग), शांत, एवं
करुण रस
में पाया
जाता है।
(अ) माधुर्य-गुण
संपन्न रचना
में सदा
छोटे वाक्य
तथा समास
रहित भाषा
का प्रयोग
किया जाता
है।
(ब) माधुर्य
गुण युक्त
काव्य में
कानों को
प्रिय लगने
वाले मृदु
वर्णों का
प्रयोग होता
है, जैसे - क,ख, ग, च, छ, ज,
झ, त, द, न,
...आदि।
(स) माधुर्य
गुण में
ट, ठ, ड, ढ, वर्णों
का निषेध
माना जाता
है क्योंकि
यह वर्ण
कठोर तथा
कर्णकटु माने
जाते हैं
तथा यह
माधुर्य भाव
के विरोधी
होते हैं।
(द) अनुनासिक
वर्णों की
अधिकता।
इस
प्रकार हम
कह सकते
हैं,कि
कर्ण प्रिय, आर्द्रता, समासरहितता, चित
की द्रवणशीलता
और प्रसन्नता
कारक काव्य
माधुर्य-गुण
युक्त काव्य
होता है।
उदाहरण 1.
बसों
मोरे नैनन
में नंदलाल,
मोहिनी
मूरत सांवरी
सूरत नैना
बने बिसाल।
उदाहरण 2.
कंकन
किंकिन नूपुर
धुनि सुनि।
कहत
लखन सन
राम हृदय
गुनि॥
3. ओज-गुण - ओज
का शाब्दिक
अर्थ है-तेज, प्रताप
या दीप्ति
। जिस
काव्य को
पढने या
सुनने से
ह्रदय में
ओज, उमंग
और उत्साह
का संचार
होता है, उसे
ओज-गुण
प्रधान काव्य
कहा जाता
हैं। यह
गुण मुख्य
रूप से
वीर, वीभत्स, रौद्र
और भयानक
रस में
पाया जाता
है।
(अ) इस
प्रकार के
काव्य में
कठोर संयुक्ताक्षर
वाले वर्णों
का प्रयोग
होता है।
(ब) इसमें
संयुक्त वर्ण 'र' के
संयोगयुक्त ट, ठ, ड, ढ, ण
का प्राचुर्य
होता है।
(स) समास
आधिक्य और
कठोर वर्णों
की प्रधानता
होती है।
उदाहरण 1.
बुंदेले
हरबोलों के
मुँह हमने
सुनी कहानी
थी।
खूब
लड़ी मर्दानी
वह तो
झांसी वाली
रानी थी।
उदाहरण 2.
हिमाद्रि
तुंग श्रृंग
से प्रबुद्ध
शुद्ध भारती।
स्वयंप्रभा, समुज्ज्वला
स्वतंत्रता पुकारती।
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