(Kavay ki paribhasha evam swroop/Kavay ke tattav/kavayshashtr/काव्य का अर्थ/काव्य की परिभाषा/भाव तत्व / कल्पना तत्व /बुद्धि तत्व/शैली तत्व/काव्य का स्वरूप/काव्य शास्त्र)
प्राचीन और भारतीय वाड्मय में ‘काव्य’ शब्द का प्रयोग साहित्य के नाटक आदि सभी विधाओं के लिए किया जाता था। किंतु आज ‘काव्य’ शब्द का अर्थ केवल कविता ही समझा जाता है। आज ‘काव्य’ का अर्थ सीमित हो गया है। काव्य के व्यापक अर्थ में रागात्मक भावनाओं से संबंधित सभी रचनाएं आ जाती है। आरंभ में गद्य, पद्य, नाटक, चम्पू आदि सब कुछ काव्य के अंतर्गत आते थे किंतु आज हम काव्य का अर्थ केवल कविता तक ही सीमित रखते हैं।
काव्य का अर्थ-
काव्य की परिभाषा देने से पहले हमें ‘काव्य’ शब्द का अर्थ जान लेना चाहिए। ‘अभिनवगुप्त’ ने ‘काव्य’ के विषय में लिखा है -‘कवनीय-काव्यम’ अर्थात जो कुछ वर्णनीय है, वही काव्य है। संस्कृत एवं हिंदी में काव्य-निर्माता को कवि कहते हैं। अंग्रेजी में कवि का पर्यायवाची शब्द Poet है। अंग्रेजी में ‘Poet’ शब्द का अर्थ है - निर्माता या विधायक। ‘Poem’ का अर्थ है - निर्माण या सृजना। अतः काव्य शब्द का अर्थ है - कवि कर्म या काव्य सृजना
काव्य की परिभाषा-
विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से काव्य को परिभाषित करने का प्रयास किया है। विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओँ को हम मुख्य तौर पर तीन भागों में बांट सकते हैं-
1.
संस्कृत के विद्वानों द्वारा दी गई काव्य की परिभाषाएं
2.
पाश्चात्य विद्वानों द्वारा दी गई काव्य की परिभाषाएं
3.
हिंदी के विद्वानों द्वारा दी गई काव्य की परिभाषा
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(क) संस्कृत के विद्वानों द्वारा दी गई काव्य की परिभाषाएं - इसे परिभाषित करने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि संस्कृत में काव्य शब्द का प्रयोग कविता के लिए हुआ है। काव्य शब्द ‘कविता’ का पर्याय होते हुए भी संस्कृत काव्यशास्त्र में दोहरा अर्थ देता है। अपने व्यापक अर्थ में यह शब्द (काव्य) संपूर्ण ललित साहित्य अर्थात साहित्य की सभी विधाओं के लिए प्रयुक्त होता है तथा अपने संकुचित अर्थ में यह शब्द केवल कविता का पर्याय भी है। अतः संस्कृत काव्य-शास्त्रियों द्वारा दी गई काव्य संबंधी परिभाषाएं भी एक ओर साहित्य और दूसरी ओर कविता को परिभाषित करती है।
प्रमुख संस्कृत काव्य-शास्त्रियों द्वारा दी गई काव्य संबंधी परिभाषाएं-
(1) काव्य उस रचना को कहते हैं, जो अलंकारों से युक्त, गुण सहित और दोष रहित और जिसमें अभीष्ट अर्थ का वर्णन संक्षिप्त रीति से किया जाए।
इस परिभाषा के अनुसार काव्य में चार विशेषताएं मानी गई हैं जिनमें तीन विधि है और एक निषेध।
1.
अलंकार से युक्त होना (विधि)
2.
गुणों से युक्त होना (विधि)
3.
कम शब्दों में अभीष्ट अर्थ की सिद्धि (विधि)
4. दोष रहित होना (निषेध)
‘भामह’ के अनुसार “शब्द और अर्थ में सहित का भाव काव्य है”।
अर्थात “काव्य सार्थक शब्दों की रचना है”।
‘मम्मट’ के अनुसार “दोष रहित, गुण सहित तथा कभी-कभी अलंकार रहित होने पर भी सार्थक पदों की रचना काव्य है”।
संस्कृत काव्य-शास्त्रियों की उपयुक्त परिभाषा में अनेक त्रुटियां दिखाई पड़ती हैं। ‘अग्निपुराणकार’ तथा ‘आचार्य मम्मट’ ने ‘दोष रहित’ शब्द को काव्य की परिभाषा में जोड़ा है। जबकि इस संसार के किसी भी वस्तु या रचना को दोष रहित नहीं कहा जा सकता। अतः इस शब्द का प्रयोग अनुचित है। इसी प्रकार ‘मम्मट’ की परिभाषा में ‘कभी-कभी बिना अलंकारों के भी’ पद का प्रयोग अनुचित है। जब अलंकारों के बिना भी तथा अलंकारों से युक्त भी दोनों रूपों में काव्य रचना संभव है तो फिर इसके वर्णन की आवश्यकता ही नहीं है।
इस प्रकार ‘भामह’ की परिभाषा भी अतिव्याप्ति के दोष से युक्त है। क्योंकि हर सार्थक शब्दों की रचना को कविता अथवा काव्य नहीं कहा जा सकता।
संस्कृत काव्य-शास्त्रियों की निम्नलिखित परिभाषाएं अत्यंत सुंदर एवं सारगर्भित है-
(1) रसात्मक वाक्य काव्य है। “वाक्यं रसात्मकं काव्यम्” (आचार्य विश्वनाथ)
(2) रमणीय अर्थ का प्रतिपादक शब्द ही काव्य है।(रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्) (पंडितराज जगन्नाथ)
यह दोनों ही परिभाषाएं संस्कृत काव्यशास्त्र की कविता संबंधी प्रमुख परिभाषाएं कही जा सकती हैं और यह दोनों ही परिभाषाएं काव्य के अनुभूति पक्ष (रस, रमणीयता) तथा अभिव्यक्ति पक्ष (वाक्य, शब्द) - दोनों पक्षों के समन्वय पर आधारित होने के कारण पूर्ण परिभाषाएं मानी जा सकती हैं।
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(ख) पाश्चात्य विद्वानों द्वारा दी गई काव्य की परिभाषाएं-
(1) “कविता प्रकृति का सवेंदनात्मक एवं लयात्मक अनुकरण है”। (अरस्तु)
(Poetry is an imitation of nature by a pathetic and numerous speech.)
(2) “कविता मूलत: जीवन की आलोचना है”। (मैथ्यू अर्नाल्ड)
(Poetry is at bottom a criticism of life.)
(3) “कविता शांति के समय स्मरण की हुई उत्कट भावनाओं का सहज उद्रेक है”। (वर्ड्सवर्थ)
(Poetry is spontaneous overflow of powerful feelings. It takes its origin from emotions recollected in tranquillity.)
(4) “कविता उत्तमोत्तम शब्दों का उत्तमोत्तम क्रम-विधान है”। (कॉलरिज)
(Poetry is the best words in the best order.)
(5) “कविता कल्पना तथा मानवीय आवेगों द्वारा जीवन की व्याख्या करती है”। ( हडसन)
(Poetry is interpretation of life through imagination and emotion.)
(6) “कविता वह कला है जो सत्य को आनंद से समन्वित करती है। इस कार्य में वह बुद्धि का आधार लेती है और कल्पना की सहायता”। (जॉनसन)
( Poetry is the art of Uniting pleasure with truth by calling
imagination to the help of reason.)
(ग) हिंदी के विद्वानों द्वारा दी गई काव्य परिभाषाएं -
(1) “जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है। हृदय की इस मुक्ति साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती है, उसे कविता कहते है। (आचार्य रामचंद्र शुक्ल)
(2) “काव्य संसार के प्रति कवि की भाव प्रधान मानसिक प्रतिक्रियाओं की
श्रेय को प्रेय देने वाली अभिव्यक्ति है”।
(3) “ज्ञान राशि के संचित कोष का नाम साहित्य (काव्य) है”। (आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी)
(4) “कविता कवि विशेष की भावनाओं का चित्रण है और यह चित्रण इतना ठीक है कि उससे वैसी ही भावना से किसी दूसरे के हृदय में आविर्भूत हो जाती है”। (महादेवी वर्मा)
(5) “काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है, जिसका संबंध विश्लेषण, विकल्प या विज्ञान से नहीं है। यह श्रेयमयी प्रेय रचनात्मक ज्ञानधारा है”। (जयशंकर प्रसाद)
(6) ‘कविता हमारे परिपूर्ण क्षणों की वाणी है’। (सुमित्रानंदन पंत)
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कविता के पूर्ण सौन्दर्य को परिभाषा के सीमित शब्दों में बांधना संभव नहीं है। जब व्यक्ति ने कविता को परिभाषा में बांधने की कोशिश की है, तब हम से कुछ न कुछ अवश्य छूट गया है।
‘कविता’ साहित्य की प्रमुख विधा है। इसमें भाव तत्व सर्वाधिक प्रबल रहता है। साहित्य को यदि हम जीवन की आलोचना कहते हैं तो कविता को हम “जीवन की भावपरक आलोचना” कह सकते हैं। वस्तुत सच्ची कविता वह है जो कवि और पाठक दोनों को भावनानंद प्रदान करने की क्षमता रखती है।
काव्य के तत्व
काव्य मानवीय भावों का अन्तः संयोजन है। सर्वप्रथम ‘विंचेस्टर’ नामक विद्वान ने काव्य के तत्वों का उल्लेख किया। तत्पश्चात सभी विद्वानों ने काव्य के तत्वों को स्वीकार किया। बाबू गुलाब राय ने काव्य का मूल तत्व रागात्मक या भावनात्मक माना है। विभिन्न विद्वानों ने काव्य के निम्नलिखित चार तत्व स्वीकार किए हैं।
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1.
भाव तत्व
2.
कल्पना तत्व
3.
बुद्धि तत्व
4. शैली तत्व
विभिन्न कवियों एवं विद्वानों ने अपनी अपनी-अपनी रूचि के अनुसार किसी एक तत्व को अधिक महत्व दिया है। ‘वर्ड्सवर्थ’ भाव तत्व के समर्थक हैं, ‘मैथ्यू अर्नाल्ड’ बुद्धि तत्व के समर्थक रहे हैं। ‘पंत’ कल्पना तत्व को महत्व देते हैं और ‘कॉलरिज’ ने शैली तत्व पर बल दिया है।
(1) भाव तत्व - भाव तत्व काव्य का ही नहीं अपितु संपूर्ण साहित्य का मूल तत्व है। इसे साहित्य अथवा काव्य का रचनात्मक तत्व भी कहते हैं। भाव एक प्रकार से मनोविकार है। “आचार्य रामचंद्र शुक्ल” ने लिखा है - “नाना विषयों के बोध का विधान होने पर उससे संबंध रखने वाली इच्छा की एकरूपता के अनुसार अनुभूति के जो भिन्न-भिन्न योग संगठित होते हैं, वे भाव या मनोविकार कहलाते हैं”। इससे स्पष्ट है कि भाव का संबंध मानव की संवेदनात्मक अनुभूति से होता है। यही काव्य का प्रमुख कार्य है। काव्य में विभिन्न भावों को प्रकट किया जाता है। भाव की परिपक्व अवस्था को ‘रस’ कहा जाता है। यही काव्य की आत्मा और उपलब्धि है। इसी कारण भारतीय और पाश्चात्य विद्वान काव्य के क्षेत्र में भाव के महत्व को स्वीकार करते हैं।
(2) कल्पना तत्व - सुंदर तत्व की सर्जना कल्पना तत्व के माध्यम से की जा सकती है। कल्पना भाव को पुष्ट करती है, उसके लिए सामग्री उपस्थित करती है तथा साथ ही अभिव्यक्ति में भी सहायक होती है। कल्पना का संबंध मानसिक श्रृष्टि से होता है। वह चाहे कवि की भावनाओं के अनुकूल ब्रह्मा की सृष्टि का पुनर्निर्माण हो चाहे उसमें जोड़-तोड़ और उलटफेर करके बिल्कुल नई रचना हो। ‘शेक्सपियर’ का कथन है कि “कल्पना अज्ञात वस्तुओं को आकार प्रदान करती है। शून्य को भी सत्ता और आकार देती है”। विद्वानों ने कल्पना के नियंत्रित एवं अनियंत्रित दो भेद किये हैं। कविता नियंत्रित कल्पना भाव को साज-सवारकर प्रकट करती है।
(3) बुद्धि तत्व – बुधि तत्व का भी काव्य के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहता है। बुधि तत्व कल्पना को अनियंत्रित होने से बचाता है तथा भावों को मर्यादा के भीतर रखता है। बुधि तत्त्व ही सत्यं और शिवम् की रक्षा करता है। वर्ण्य-विषय का उचित संयोजन भी बुधि तत्त्व से होता है। हम कह सकते हैं कि बुधि भाव को आधारभूमि प्रदान करती है और कल्पना को जीवन की सीमा, शब्द को उचित और अर्थ को औचित्यपूर्ण विस्तार प्रदान करती है। भावनाओं की तीव्रता के कारण कभी-कभी कवि की कल्पना उड़ान की सीमाओं का अतिक्रमण करने लगती है, उस समय बुधि तत्त्व कवि पर रोक लगाती है।
(4) शैली तत्व - शैली तत्वों का संबंध अभिव्यक्ति से है। हृदयगत भावों की अभिव्यक्ति शैली के माध्यम से होती है। इसके द्वारा कवि के हृदय के साथ पाठक के हृदय का स्पंदन होता है। इससे भाषा में संप्रेषण का गुण आता है। इस तत्व में शब्द-शक्ति, अलंकार, छंद, गुण, रस आदि का समावेश भी रहता है। भाव, कल्पना तथा बुद्धि में से तीनों तत्व अमूर्त हैं। इन्हें आकार और मूल रूप शैली तत्त्व ही प्रदान करती है। यदि भाव, अर्थ और अनुभूति आदि काव्य के प्राण तत्व है, तो अभिव्यक्ति तत्व काव्य का शरीर होता है। शैली भी काव्य के लिए उतनी ही आवश्यक है जितने की अन्य तत्व।
काव्य की परिभाषा में विभिन्न विद्वानों द्वारा इन्हीं तत्वों में से किसी एक या एक से अधिक तत्वों को प्रमुखता दी जाती है।
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