सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय


सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय

 

भारत की भूमि पर ऐसे कई लेखक और कवि हुए हैं जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया हैं।  जैसे; जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला आदि। आज हम आपको हिंदी भाषा के ऐसे ही कवि सुमित्रानंदन पंत के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बिना हिंदी साहित्य की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।


सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म 

 

सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म 20 मई 1900 को अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गांव में हुआ था। यह जिला उत्तराखंड में स्थित है। सुमित्रानंदन पंत के पिता जी का नाम  गंगा दत्त और माताजी का नाम सरस्वती देवी था। पंत जी के जन्म के कुछ ही समय बाद इनकी माता जी का निधन हो गया। सुमित्रानंदन पंत जी का पालन पोषण उनकी दादी जी ने किया। पंत जी सात भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।

सुमित्रानंदन पंत के बचपन का नाम गुसाईं दत्त था। पंत जी को यह नाम पसंद नहीं था इसलिए इन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। सिर्फ 7 साल की उम्र में ही पंत जी ने कविता लिखना प्रारंभ कर दिया था।

 

सुमित्रानंदन पंत की शिक्षा और प्रारंभिक जीवन

 

 सुमित्रानंदन पंत जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा से पूरी की। हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए 18 वर्ष की उम्र में अपने भाई के पास बनारस चले गए हैं। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद पन्त जी इलाहाबाद चले गए और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में स्नातक की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया।

सत्याग्रह आंदोलन के समय पंत अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर महात्मा गांधी जी का साथ देने के लिए आंदोलन में चले गए। सुमित्रानंदन पंत फिर कभी अपनी पढ़ाई जारी नहीं कर सके। परंतु घर पर ही इन्होंने हिंदी, संस्कृत और बंगाली साहित्य का अध्ययन जारी रखा।
1918
के आसपास तक वे हिंदी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। वर्ष 1926 – 27 में पन्त जी के प्रसिद्ध काव्य संकलन “पल्लवका प्रकाशन हुआ। जिसके गीत सौन्दर्यता और पवित्रता का साक्षात्कार करते हैं।

कुछ समय बाद सुमित्रानंदन पंत अल्मोड़ा आ गए। यहाँ भी मार्क्स और फ्राइड की विचारधारा से प्रभावित हुए थे। वर्ष 1938 में पंत जी ने “रूपाभनाम का एक मासिक पत्र शुरू किया। वर्ष 1955 से 1962 तक पन्त जी आकाशवाणी से जुड़े रहे और मुख्य निर्माता के पद पर कार्य किया।

 

सुमित्रानंदन पंत की काव्य कृतियां 

 

सुमित्रानंदन पंत के काव्य में कल्पना एवं भावों की सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैंइन्होंने प्रकृति एवं मानवीय भावों के चित्रण में विकृत तथा कठोर भावों को स्थान नहीं दिया हैइनकी छायावादी कविताएं अत्यंत कोमल एवं मृदुल भावों को अभिव्यक्त करती हैंइन्हीं कारणों से पंत को प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है|

 

सुमित्रानंदन पंत जी की कुछ प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं – ग्रंथि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चांद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि है।

 

लोकायतन

 इस महाकाव्य में कवि की सांस्कृतिक और दार्शनिक विचारधारा व्यक्त हुई है। इस रचना में कवि ने ग्रामीण जीवन और जन भावनाओं को व्यक्त किया है।

वीणा

 इस रचना में पंत जी के प्रारंभिक प्रकृति के अलौकिक सौंदर्य से पूर्ण गीत संग्रहीत हैं।

पल्लव

इस संग्रह में प्रेम, प्रकृति और सौंदर्य के व्यापक चित्र प्रस्तुत किए गए है।

 गुंजन

इसमें प्रकृति, प्रेम और सौंदर्य से संबंधित गंभीर एवं प्रौढ़ रचनाएं संकलित की गई है।

 ग्रंथि

इस काव्य संग्रह में वियोग का स्वर प्रमुख रूप से मुखरित हुआ है। प्रकृति यहां भी कवि की सहचरी रही है।

उनके जीवनकाल मे  उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुई। जिनमें कविताएं, पदय – नाटक और निबंध शामिल है। पंत अपने विस्तृत समय में एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में सामने आते हैं किंतु उनकी सबसे कलात्मक कविताएं “पल्लव” में संकलित हैं। जो 1918 से 1924 तक लिखी गई। यह 32 कविताओं का संग्रह है।

 

सुमित्रानंदन पंत के पुरस्कार और उपलब्धियां 

 

अपनी साहित्यिक सेवा के लिए सुमित्रानंदन पंत को पद्मभूषण (1961), ज्ञानपीठ (1968), साहित्य अकादमी तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से अलंकृत किया गया।
सुमित्रानंदन पंत बचपन में जिस घर में रहते थे उस घर को “सुमित्रानंदन पंत वीथिकाके नाम से एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। इसमें उनके व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुओं जैसे कपड़ों, कविताओं की मूल पांडुलिपियों, छायाचित्रों, पत्रों और पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया है।

इसमें एक पुस्तकालय भी है जिसमें उनकी व्यक्तिगत तथा उनसे संबंधित पुस्तकों का संग्रह है। संग्रहालय में उसकी स्मृति में प्रत्येक वर्ष पंत व्याख्यानमाला का आयोजन होता है। यहां से सुमित्रानंदन पंत व्यक्तित्व और कृतित्व नामक पुस्तक भी प्रकाशित की गई है। उनके नाम पर इलाहाबाद शहर में स्थित हाथी पार्क का नाम “सुमित्रानंदन पंत उद्यानकर दिया गया है।

 

सुमित्रानंदन पंत जी की मृत्यु 

 

28 दिसंबर 1977 को हिंदी साहित्य का प्रकाशपुंज संगम नगरी इलाहाबाद में हमेशा के लिए बुझ गया। सुमित्रानंदन पंत जी को आधुनिक हिंदी साहित्य का युग प्रवर्तक कवि माना जाता है।