धर्मवीर भारती  जीवन परिचय


जन्म

धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर 1926 को इलाहाबाद के 'अतरसुइया' नामक मोहल्ले में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री. चिरंजीवलाल वर्मा और माता का नाम श्रीमती चंदादेवी था। भारती के पूर्वज पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शाहजहाँपुर ज़िले के 'ख़ुदागंज' नामक क़स्बे के ज़मीदार थे। पेड़, पौधोंफूलों और जानवरों तथा पक्षियों से प्रेम बचपन से लेकर जीवन पर्यन्त रहा। संस्कार देते हुए बड़े लाड़ प्यार से माता पिता अपने दोनों बच्चों धर्मवीर और उनकी छोटी बहन वीरबाला का पालन कर रहे थे कि अचानक उनकी माँ सख्त बीमार पड़ गयीं दो साल तक बीमारी चलती रही। बहुत खर्च हुआ और पिता पर कर्ज़ चढ़ गया। माँ की बीमारी और कर्ज़ से वे मन से टूट से गये और स्वयं भी बीमार पड़ गये। 1939 में उनकी मृत्यु हो गई

शिक्षा

इन्हीं दिनों पाढ्य पुस्तकों के अलावा कविता पुस्तकें तथा अंग्रेज़ी उपन्यास पढ़ने का बेहद शौक़ जागा। स्कूल ख़त्म होते ही घर में बस्ता पटक कर वाचनालय में भाग जाते वहाँ देर शाम तक किताबें पढ़ते रहते। इंटरमीडियेट में पढ़ रहे थे कि गांधी जी के आह्वान पर पढ़ाई छोड़ दी ओर आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। सुभाष के प्रशंसक थे, बचपन से ही शस्त्रों के प्रति आकर्षण भी जाग उठा था सो हर समय हथियार साथ में लेकर चलने लगे और 'सशस्त्र क्रांतिकारी दल' में शामिल होने के सपने मन में सँजोने लगे, पर अंतत: मामा जी के समझाने बुझाने के बाद एक वर्ष का नुक़सान करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई के लिए दाख़िला लिया। कोर्स की पढ़ाई के साथ साथ उन्हीं दिनों शैली, कीट्स, वर्ड्सवर्थ, टॅनीसन, एमिली डिकिन्सन तथा अनेक फ़्रांसीसी, जर्मन और स्पेन के कवियों के अंग्रेज़ी अनुवाद पढ़े, एमिल ज़ोलाशरदचंद्र, गोर्की, क्युप्रिन, बालज़ाक, चार्ल्स डिकेन्स, विक्टर हयूगो, दॉस्तोयव्स्की और तॉल्सतोय के उपन्यास ख़ूब डूब कर पढ़े।

लेखन और पत्रकारिता

स्नातक, स्नातकोत्तर की पढ़ाई ट्युशनों के सहारे चल रही थी। उन्हीं दिनों कुछ समय श्री पद्मकांत मालवीय के साथ 'अभ्युदय' में काम कियाइलाचन्द्र जोशी के साथ 'संगम' में काम किया। इन्हीं दोनों से उन्होंने 'पत्रकारिता' के गुर सीखे थे। कुछ समय तक 'हिंदुस्तानी एकेडेमी' में भी काम किया। उन्हीं दिनों ख़ूब कहानियाँ भी लिखीं। 'मुर्दों का गाँव' और 'स्वर्ग और पृथ्वी' नामक दो कहानी संग्रह छपे। छात्र जीवन में भारती पर शरत चंद्र चट्टोपाध्यायजयशंकर प्रसाद और ऑस्कर वाइल्ड का बहुत प्रभाव था। उन्हीं दिनों वे माखन लाल चतुर्वेदी के सम्पर्क में आये और उन्हे पिता तुल्य मानने लगे। दादा माखनलाल चतुर्वेदी ने भारती को बहुत प्रोत्साहित किया।

उच्च शिक्षा और प्रगतिशील लेखक संघ

स्नातक में हिन्दी में सर्वाधिक अंक मिलने पर प्रख्यात 'चिंतामणि गोल्ड मैडल' मिला। स्नातकोत्तर अंग्रेज़ी में करना चाहते थे पर इस मैडल के कारण डॉ. धीरेन्द्र वर्मा के कहने पर उन्होंने हिन्दी में नाम लिखा लिया। स्नातकोत्तर की पढ़ाई करते समय 'मार्क्सवाद' का उन्होंने धुंआधार अध्ययन किया। 'प्रगतिशील लेखक संघ' के स्थानीय मंत्री भी रहे लेकिन कुछ ही समय बाद साम्यवादियों की कट्टरता तथा देशद्रोही नीतियों से उनका मोहभंग हुआ। तभी उन्होंने छहों भारतीय दर्शनवेदांत तथा बड़े विस्तार से वैष्णव और संत साहित्य पढ़ा और भारतीय चिंतन की मानववादी परम्परा उनके चिंतन का मूल आधार बन गयी।

शोध कार्य

डॉ. धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में 'सिद्ध साहित्य' पर शोध कार्य चल रहा था। साथ ही साथ उस समय कई कवितायें लिखी गई जो बाद में 'ढंडा लोहा' नामक पुस्तक के रूप में छपी। और उन्हीं दिनों 'गुनाहों का देवता' उपन्यास लिखा। साम्यवाद से मोहभंग के बाद 'प्रगतिवाद: एक समीक्षा' नामक पुस्तक लिखी। कुछ अंतराल बाद ही 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' जैसा अनोखा उपन्यास भी लिखा।

इलाहबाद विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक

शोधकार्य पूरा करने के बाद वहीं विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक के रूप में नियुक्ति हो गई। देखते ही देखते बहुत लोकप्रिय अध्यापक के रुप में उनकी प्रशंसा होने लगी। उसी दौरान 'नदी प्यासी थी' नामक 'एकांकी नाटक संग्रह' और 'चाँद और टूटे हुए लोग' नाम से कहानी संग्रह छपे। 'ठेले पर हिमालय' नाम से ललित रचनाओं का संग्रह छपा और शोध प्रबंध 'सिध्द साहित्य' भी छप गया। मौलिक लेखन की गति बड़ी तेज़ी से बढ़ रही थी। साथ ही अध्ययन भी पूरी मेहनत से किया जाता रहा। उस दौरान 'अस्तित्ववाद' तथा पश्चिम के अन्य नये दर्शनों का विशद अध्ययन किया। रिल्के की कविताओं, कामू के लेख और नाटकों, ज्याँ पॉल सार्त्र की रचनाओं और कार्ल मार्क्स की दार्शनिक रचनाओं में मन बहुत डूबा। साथ ही साथ महाभारतगीताविनोबा और लोहिया के साहित्य का भी गहराई से अध्ययन किया। गांधीजी को नयी दृष्टि से समझने की कोशिश की। भारतीय संत और सूफ़ी काव्य और विशेष रूप से कबीरजायसी और सूर को परिपक्व मन और पैनी हो चुकी समझ के साथ पुन: और समझा।

मुम्बई और संपादन

इसी बीच 1954 में श्रीमती कौशल्या अश्क द्वारा सुझाई गई एक पंजाबी शरणार्थी लड़की 'कांता कोहली' से विवाह हो गया। संस्कारों के तीव्र वैषम्य के कारण वह विवाह असफल रहा। बाद में सम्बंध विच्छेद हो गया। लेखन का काम अबाध चल रहा था। 'सात गीत वर्ष', 'अंधायुग', 'कनुप्रिया ' और 'देशांतर' प्रकाशित हो चुके थे। कुछ ही समय बाद बम्बई से एक प्रस्ताव 'धर्मयुग' के संपादन का आया। 'निकष' को आगे चला पाने की कसक मन में थी ही, संपादन की ललक ने प्रस्ताव पर विचार किया और विश्वविद्यालय से एक वर्ष की छुट्टी लेकर 1960 मे बम्बई चले आये।

पुनर्विवाह

धर्मयुग के संपादन में नये क्षितिज नज़र आने लगे, साहित्यिक लेखन से इतर अपने देश के लिये बहुत कुछ बड़े काम किये जा सकते हैं यह समझ में आने लगा तो विश्वविद्यालय की नौकरी से त्यागपत्र देकर पूरे समर्पण के साथ धर्मयुग के संपादन में ध्यान केंद्रित किया। इस दौरान एक अत्यंत शिक्षित और संभ्रांत परिवार में जन्मी इलाहाबाद विश्वविद्यालय की शोध छात्रा से विवाह किया। यही 'पुष्पलता शर्मा' बाद में पुष्पा भारती नाम से प्रख्यात हुईं।

रचनाएँ

कविता

ठंडा लोहा (1952)

सात गीत वर्ष (1959)

कनुप्रिया (1959)

सपना अभी भी (1993)

आद्यन्त (1999)

पद्यनाटक 

अंधायुग (1954)

कहानी संग्रह

मुर्दों का गाँव (1946)

स्वर्ग और पृथ्वी (1949)

चाँद और टूटे हुए लोग (1955)

बंद गली का आख़िरी मकान (1969)

साँस की क़लम से (पुष्पा भारती द्वारा संपादित सम्पूर्ण कहानियाँ ) (2000)

रेखाचित्र

कुछ चेहरे कुछ चिंतन (1997)

संस्मरण

शब्दिता (1997)

उपन्यास

गुनाहों का देवता(1949)

सूरज का सातवाँ घोडा (1952)

निबंध

ठेले पर हिमालय (1958)

कहनी अनकहनी (1970)

पश्यंती (1969)

साहित्य विचार और स्मृति (2003)

रिपोर्ताज

मुक्त क्षेत्रे : युद्ध क्षेत्रे (1973)

युद्ध यात्रा (1972)

आलोचना

प्रगतिवाद: एक समीक्षा (1949)

मानव मूल्य और साहित्य (1960)

एकांकी नाटक 

नदी प्यासी थी (1954)

अनुवाद 

ऑस्कर वाइल्ड की कहानियाँ (1946)

देशांतर (21 देशों की आधुनिक कवितायें ) 1960

यात्रा विवरण 

यात्रा चक्र (1994)

मृत्यु के बाद प्रकाशित 

धर्मवीर भारती की साहित्य साधना (संपादन पुष्पा भारती) 2001

धर्मवीर भारती से साक्षात्कार (संपादन पुष्पा भारती) (1998)

अक्षर अक्षर यज्ञ (पत्र : संपादन पुष्पा भारती 1998)

संपादन 

अभ्युदय

संगम

हिन्दी साहित्य कोष (कुछ अंश)

आलोचना

निकष

धर्मयुग

 

धर्मयुग को पत्रकारिता का आकाश छूती ऊँचाइयों तक पहुंचा कर सत्ताईस वर्षों तक लगातार पूरी एकाग्रता के साथ काम करने के उपरांत 1987 में अवकाश ग्रहण कर लिया।

बीमारी

1989 में हृदय रोग से गंभीर रूप से बीमार हो गये। गहन चिकित्सा के बाद बच तो गये किंतु स्वास्थ्य फिर कभी पूरी तरह सुधरा नहीं। कई प्रकार के तनावों को झेलते हुए सत्ताईस बरस की रात और दिन की बेइंतिहा दिमाग़ी मेहनत से शरीर काफ़ी अशक्त हो चुका था। वे केवल अद्भुत इच्छा शक्ति के साथ काम करते रहे थे।

निधन

अंतत: 4 सितंबर 1997 को नींद में ही मृत्यु को वरण कर लिया।

सम्मान एवं पुरस्कार

डॉ. धर्मवीर भारती को मिले सम्मान एवं पुरस्कार

1967

संगीत नाटक अकादमी सदस्यता - दिल्ली

1984

हल्दीघाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार - राजस्थान

1985

साहित्य अकादमी रत्न सदस्यता - दिल्ली

1986

संस्था सम्मान - उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान

1988

सर्वश्रेष्ठ नाटककार पुरस्कार - संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली

1988

सर्वश्रेष्ठ लेखक सम्मान - महाराणा मेवाड़ फ़ाउंडेशन - राजस्थान

1989

गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार - केंद्रीय हिन्दी संस्थान - आगरा

1989

राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान - बिहार सरकार

1990

भारत भारती सम्मान - उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान

1990

महाराष्ट्र गौरव - महाराष्ट्र सरकार

1991

साधना सम्मान - केडिया हिन्दी साहित्य न्यास - मध्यप्रदेश

1992

महाराष्ट्राच्या सुपुत्रांचे अभिनंदन - वसंतराव नाईक प्रतिष्ठान- महाराष्ट्र

1994

व्यास सम्मान - के. के. बिड़ला फ़ाउंडेशन - दिल्ली

1996

शासन सम्मान - उत्तर प्रदेश सरकार - लखनऊ

1997

उत्तर प्रदेश गौरव - अभियान संस्थान - बम्बई