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हरिशंकर परसाई जीवन परिचय /Harishankar Parsai Jivan Parichay/Biography of Harishankar Parsai in Hindi |
हरिशंकर परसाई (जीवन परिचय)
जीवन परिचय: हरिशंकर परसाई का
जन्म 22 अगस्त सन 1922 ईस्वी में मध्यप्रदेश
के होशंगाबाद जिले के जमानी गांव में हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने
गांव में ही प्राप्त की। बाद में इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में
परास्नातक (एम.ए.) की उपाधि प्राप्त की। कुछ वर्षों तक उन्होंने अध्यापन कार्य
किया, परंतु बार-बार के तबादलों से परेशान होकर 1957 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्र लेखन को ही अपने जीवन का लक्ष्य
बना लिया। जबलपुर से इन्होंने “वसुधा” नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका निकाली जो
काफी वर्षों तक घाटे में चलती रही। आखिरकार उन्हें इस पत्रिका को बंद कर देना पड़ा।
इसके बाद ये अन्य पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखने लगे तथा मृत्यु-पर्यंत लिखते रहे। 1995
ईस्वी में इस महान व्यंग्यकार का निधन हो गया।
रचनाएं:- हरिशंकर परसाई जी
मुख्य रूप से गद्य लेखक है। इन्होंने अपनी लेखनी से हिंदी व्यंग साहित्य को समृद्ध
किया है। इनकी प्रमुख रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं:-
कहानी संग्रह:- ‘हंसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे
उनके दिन फिरे’।
उपन्यास:- ‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की
खोज’।
निबंध-संग्रह:- ‘तब की
बात और थी’, ,भूत के पांव पीछे’, ‘बेईमानी की परत’, ‘पगडंडियों का जमाना’, ‘सदाचार
की ताबीज’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘और अंत में’।
व्यंग्य-निबंध संग्रह:- ‘वैष्णव की फिसलन’, ‘तिरछी
रेखाएं’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’।
इनकी सभी रचनाएं हरिशंकर परसाई रचनावली के नाम
से छह भागों में प्रकाशित हैं।
पुरस्कार और सम्मान:- समय-समय पर श्री
हरिशंकर प्रसाद जी को साहित्य लेखन के लिए विभिन्न पुरस्कारों एवं सम्मान से नवाजा
गया। इन्हें मिले कुछ प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान निम्नलिखित हैं:-
1. साहित्य अकादमी
पुरस्कार – “विकलांग श्रद्धा का दौर के लिए”।
2. मध्य प्रदेश
के संस्कृति विभाग का पुरस्कार ।
3. चकल्लस पुरस्कार
साहित्यिक विशेषताएं:- श्री हरिशंकर परसाई जी
की गणना हिंदी के श्रेष्ठ व्यंग्य लेखको में होती है। इनके साहित्य की विशेषताओं
का आधार भी इनका व्यंग लेखन ही है। इन्होंने अपने व्यंग्यों के लिए जिन विषयों का
चुनाव किया है, वह विषय निश्चित तौर पर हमारे आसपास ही घटित होते दिखाई
देते हैं। फैशन परस्ती, अवसरवादिता,
झूठा मान-सम्मान, चुनाव व्यवस्था,
राजनीतिक दांवपेंच, स्वार्थ, भ्रष्टाचार, धर्म, शिक्षा, स्वास्थ्य के
नाम पर ठगी, एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़, भाई भतीजावाद, चरित्र-हीनता आदि इनके प्रमुख विषय
रहे हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं में समाज में व्याप्त कुरीतियों तथा जड़ परंपराओं
पर करारा व्यंग्य किया है। यह भारतीय जीवन के पाखंडों का पर्दाफाश करते दिखाई देते
हैं। इनका व्यंग्य बड़ा तीखा और चूभने वाला है। इनका व्यंग्य केवल मनोरंजन के लिए
नहीं है। इन्होंने अपने व्यंग्य के द्वारा बार-बार पाठकों का ध्यान व्यक्ति और
समाज की उन कमजोरियों और विसंगतियों की ओर आकृष्ट किया है जो जीवन को दूबर बना रही
हैं।
भाषा शैली:- श्री हरिशंकर परसाई
जी की भाषा आम बोलचाल की व्यवहारिक खड़ी बोली है। तत्सम शब्दावली के प्रति इनका
कोई विशेष आग्रह नहीं है। इन्होंने अपनी भाषा में तदभव, देशज, अंग्रेजी व उर्दू फारसी के शब्दों का प्रयोग किया है। भाषा में प्रसाद
गुण के कारण इनकी भाषा सरल तथा सहज है। इन्होंने अपने साहित्य में लाक्षणिकता एवं
व्यंग्यात्मकता उत्पन्न करने हेतु मुहावरों और लोकोक्तियों को नए रूप में प्रस्तुत
किया है। इनका वाक्य विन्यास सरल, रोचक एवं व्यंग्यपूर्ण है।
इन्होंने अपनी भाषा में व्यंग्यानुकूल शैलियों यथा वर्णनात्मक, प्रतीकात्मक, विवेचनात्मक तथा चित्रात्मक शैलियों
का प्रयोग किया है।
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