कबीर की साखी अर्थ सहित /Kabir Ki Sakhiyan in Hindi With Meaning Class 9

Kabir Das ki Sakhi Summary in Hindi – संक्षिप्त में: संत कबीर दास जी ने यहाँ संकलित साखियों में जहाँ एक ओर प्रेम का गुण-गान किया हैवहीँ दूसरी तरफ उन्होंने आदर्श संत के लक्षणों के बारे में बताया है। उनके अनुसार एक आदर्श संत वही हैजो धर्म-जातिऊँच-नीचछुआ-छूत आदि पर विश्वास नहीं करता। उन्होंने ज्ञान को सर्वश्रेष्ठ माना है और उनके अनुसार ज्ञान से बढ़ कर और कुछ भी नहीं है। उन्होंने अपनी रचनाओं में ये कहा है कि कोई भी अपनी जाति या काम से छोटा-बड़ा नहीं होताबल्कि अपने ज्ञान से होता है। उन्होंने अपनी साखियों में उस समय समाज में फैले अन्धविश्वास तथा अन्य त्रुटियों का खुल कर विरोध किया है।

Kabir Das ke Sabad Summary in Hindi –  संक्षिप्त में: संत कबीर दास जी ने अपने पहले सबद की सहायता से एक ओर उस समय समाज में चल रहे विभिन्न आडम्बरों का विरोध किया हैवहीँ दूसरी ओर हमें ईश्वर को खोजने का सही रास्ता दिखाया है। उनका मानना है कि ईश्वर मंदिर-मस्जिद में नहींबल्कि खुद हमारे अंदर बसते हैं। उनके अनुसार ईश्वर जीव मात्र में उपस्थित हैना कि मंदिर एवं मस्जिद में। अपने दूसरे सबद में कबीर ने ज्ञान की आँधी से होने वाले बदलावों के बारे में बताया है। कवि का कहना है कि जब ज्ञान की आँधी आती हैतो भ्रम की दीवारें टूट जाती हैं और मोहमाया के बंधन खुल जाते हैं। जब ऐसा होता हैतो मनुष्य को सत्य-असत्य का ज्ञान हो जाता है।

कबीर की साखी (kabir ki sakhi) – Kabir Ki Sakhiyan Class 9 in Hindi


मानसरोवर सुभर जलहंसा केलि कराहिं।
मुकताफल मुकता चुगैंअब उड़ि अनत न जाहिं।1
प्रेमी ढ़ूँढ़त मैं फिरौंप्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलैसब विष अमृत होइ।2
हस्ती चढ़िये ज्ञान कौसहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार हैभूँकन दे झख मारि।3
पखापखी के कारनैसब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजैसोई संत सुजान।4
हिंदू मूआ राम कहिमुसलमान खुदाई।
कहै कबीर सो जीवताजे दुहुँ के निकटि न जाइ।5
काबा फिरि कासी भयारामहिं भया रहीम।
मोट चून मैदा भयाबैठि कबीरा जीम।6
उँचे कुल का जनमियाजे करनी ऊँच न होई।
सुबरन कलस सुरा भरासाधू निंदा सोई।7

कबीर की साखी अर्थ सहित – Kabir Ki Sakhiyan in Hindi With Meaning Class 9


मानसरोवर सुभर जलहंसा केलि कराहिं।
मुकताफल मुकता चुगैंअब उड़ि अनत न जाहिं।1

कबीर की साखी अर्थ सहित:- कबीर दास जी ने अपने इस दोहे में हमें यह बताया है कि मुक्ति का मार्ग हमें केवल प्रभु-भक्ति में ही मिल सकता है और उसी से हमें परम-आनंद की प्राप्ति होगी। इसी कारण से उन्होंने उपर्युक्त दोहे में हंसों का उदाहरण प्रस्तुत किया हैजो मानसरोवर के जल में क्रीड़ा करते हुए मोती चुग रहे हैं। उन्हें इस क्रीड़ा में इतना आनंद आ रहा है कि वो इसे छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहते।

ठीक इसी प्रकारअगर मनुष्य भी खुद को ईश्वर की भक्ति में लीन कर लेगा और परम मोक्ष का आनंद प्राप्त कर लेगातो फिर उसका ध्यान कहीं और नहीं भटकेगा। उसे प्रभु की भक्ति में मिलने वाला आनंद और कहीं नहीं मिलेगा। फिर वह प्रभु की भक्ति में ही मग्न रहेगा और इस मार्ग को छोड़कर कहीं और नहीं जायेगा।

Kabir Ki Sakhiyan in Hindi With Meaning Class 9

प्रेमी ढ़ूँढ़त मैं फिरौंप्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलैसब विष अमृत होइ।2

कबीर की साखी अर्थ सहित:- प्रस्तुत साखियों में संत कबीर दास जी ने संसार में सच्चे भक्तों की कमी के बारे में बताया है। जो व्यक्ति प्रभु की सच्ची भक्ति करता हैवह कभी भी दूसरे मनुष्य को उसकी जातधर्म या काम के लिए नीचा नहीं समझता। वह सभी मनुष्यों को सामान भावना से देखेगा और हर मनुष्य से एक समान प्रेम करेगा।

कवि के अनुसारजब दो सच्चे प्रभु-भक्त आपस में मिलते हैंतो उनके बीच कोई भेद-भावऊँच-नीचक्लेश इत्यादि (विष जैसी) बुरी भावनाएं नहीं होतीं। साथ हीजब दो सच्चे भक्त एक-दूसरे से मिलते हैंतो नीची जातदूसरे धर्म का व्यक्ति या अछूत व्यक्ति भी प्रेम का पात्र बन जाता है। इस तरह पाप भी पुण्य में परिवर्तित हो जाता हैलेकिन आज की दुनिया में दो सच्चे भक्तों का मिलन होना बहुत ही दुर्लभ है।

हस्ती चढ़िये ज्ञान कौसहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार हैभूँकन दे झख मारि।3


कबीर की साखी अर्थ सहित:- कबीर दास जी ने प्रस्तुत पंक्तियों में हमें संसार के द्वारा की जाने वाली निंदा की परवाह किये बिना ज्ञान के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है। उनके अनुसारजब हाथी चलते हुए किसी गली-मोहल्ले से गुजरता हैतो गली के कुत्ते व्यर्थ ही भौंकना शुरू कर देते हैं। असल मेंउनके भौंकने से कुछ बदलता नहीं है और हाथी उनके भौंकने की परवाह किए बिना स्वाभाविक रूप से सीधा अपने मार्ग में चलते जाता है।

ठीक इसी तरह कवि चाहते हैं कि हम अपने ज्ञान रूपी हाथी पर सवार होकरइस समाज की निंदा की परवाह किये बिनानिरंतर भक्ति के मार्ग पर चलते रहे। कबीर जी के अनुसारजब भी आप कोई ऐसा काम करेंगेजो साधारण मनुष्य के लिए कठिन हो या फिर सबसे अलग होतो आपके आस-पड़ोस या समाज के लोग आपको ऐसी बातें कहेंगेजिनसे आपका मनोबल कमजोर हो जाए। इसीलिए कवि चाहते हैं कि हम इन बातों को अनसुना करकेअपना मनोबल ऊँचा करके अपने कर्म पर ध्यान दें।

पखापखी के कारनैसब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजैसोई संत सुजान।4

कबीर की साखी अर्थ सहित:- प्रस्तुत पंक्तियों में कबीर दास जी ने हमें एक-दूसरे से तुलना की भावना को त्यागने का उपदेश दिया है। कवि के अनुसारबिना किसी द्वेष-भाव के निष्पक्ष होकर प्रभु की भक्ति करना ही मोक्ष की प्राप्ति का एकमात्र मार्ग है। जो लोग एक-दूसरे को जातिधर्मकाम या धन के आधार पर छोटा-बड़ा समझते हैंवो लोग सच्चे मन से प्रभु की भक्ति नहीं कर पाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो पाती। इसलिए हमें इन भेदभावों से ऊपर उठ करनिष्पक्ष मन से भगवान की भक्ति करनी होगीतभी हमारा कल्याण हो सकता है।

हिंदू मूआ राम कहिमुसलमान खुदाई।
कहै कबीर सो जीवताजे दुहुँ के निकटि न जाइ।5


कबीर की साखी अर्थ सहित:-प्रस्तुत दोहे में कवि ने उस समय समाज में फैले हिन्दुओं व मुस्लिमों के आपसी भेदभाव का वर्णन किया है। कवि के अनुसारउस समय समाज में हिन्दुओं तथा मुसलमानों में एक-दूसरे के प्रति काफी द्वेष था और वे एक-दूसरे के धर्म से घृणा करते थे। हिन्दू राम को महान समझते थेजबकि मुसलमान खुदा को। मगरदोनों राम और खुदा का नाम लेकर भी अपने ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकेक्योंकि उनके मन में प्रभु की भक्ति से ज्यादा आपसी भेदभाव और नफ़रत की भावना मौजूद थी।

इसी वजह से संत कबीर दास जी ने हमें यह उपदेश दिया कि हिन्दू-मुस्लिम दोनों एक हैं और राम-खुदा दोनों ईश्वर के ही रूप हैं। इसलिए हमें आपसी भेदभाव को छोड़कर सर्वश्रेष्ठ ईश्वर (फिर चाहे वो राम हो या फिर खुदा) की भक्ति में लीन हो जाना चाहिए। तभी हम मोक्ष को प्राप्त कर पाएंगे।

काबा फिरि कासी भयारामहिं भया रहीम।
मोट चून मैदा भयाबैठि कबीरा जीम।6


कबीर की साखी अर्थ सहित:- प्रस्तुत दोहे में कबीर दास जी ने हिन्दू-मुसलमान के आपसी भेदभाव को नष्ट करने का संदेश दिया है। कवि का मानना है कि अगर कोई हिन्दू या मुसलमान आपसी भेदभाव को छोड़करनिष्पक्ष होकर प्रभु की भक्ति में लीन हो जाएतो उसे मंदिर-मस्जिद एक-समान लगने लगेंगे। फिर उसे राम व रहीम एक ही ईश्वर के दो रूप लगने लगेंगेजिनमें कोई अंतर नहीं होगा। इस प्रकार हिन्दुओं व मुसलमानों को मस्जिद तथा मंदिर एकसमान रूप से पवित्र लगने लगेंगे।

कवि कहते हैं कि जब तक गेहूं को बारीक़ पीसा नहीं जातावो खाने योग्य नहीं होता हैलेकिन जैसे ही गेंहू को पीस दिया जाता हैवो स्वादिष्ट खाना बनाने लायक बन जाता है। ठीक इसी तरहहमें अपने बुरे भावों और विचारों को एकता की चक्की में पीस कर सदभावना के आटे में बदलना होगा। फिर हमें एक-दूसरे के धर्म में कोई बुराई नहीं दिखेगीहमें उनमें केवल प्रभु की भक्ति का संदेश ही दिखाई देगा। जिस दिन ऐसा हो जाएगाउस दिन हिन्दू-मुसलमान एकसाथ बैठ कर प्रेम से खाना खाएंगे।

उँचे कुल का जनमियाजे करनी ऊँच न होई।
सुबरन कलस सुरा भरासाधू निंदा सोई।7

कबीर की साखी अर्थ सहित:- पहले के समय में व्यक्ति को उसके कुल से बड़ा समझा जाता थाना कि उसके कर्म और ज्ञान से। इसी वजह से कवि ने इन दोहों में हमें यह सन्देश दिया है कि कोई भी व्यक्ति अपने कुल से नहीं बल्कि अपने कर्मो से बड़ा होता है।

जैसेअगर एक सोने के मटके में मदिरा भरी होतो वह किसी साधु के लिए मूल्यहीन हो जाता है। सोना का बना होने पर भी उसका कोई महत्व नहीं रहता। ठीक वैसे हीबड़े कुल में पैदा होने के बाद भी अगर कोई व्यक्ति बुरे कर्म करे और दूसरों के परोपकार से जुड़े महान काम ना करेतो वह बड़ा कहलाने लायक नहीं है। इसलिए हमें किसी मनुष्य को उसके कुल से नहींबल्कि उसके कर्मों से पहचानना चाहिए।

कबीर के दोहे “सबद”


Kabir Ke Dohe in Hindi With Meaning Class 9 – Kabir Ke Dohe Sakhi Meaning in Hindi

 

मोकों कहाँ ढ़ूँढ़े बंदेमैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिदना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म मेंनहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै  मिलिहौंपल भर की तालास में।
कहैं कबीर सुनो भाई साधोसब स्वाँसो की स्वाँस में।।

कबीर के दोहे अर्थ सहित:-  प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मनुष्य को यह सन्देश दिया है कि ईश्वर तो सर्व-व्यापी हैंयानी कि भगवान हर जगह मौजूद हैं। हम उन्हें मंदिर-मस्ज़िद और तमाम तीर्थों व धामों में ढूंढते रहते हैंलेकिन असल मेंवो हर वक़्त हमारे पास ही रहते हैं। कबीर जी ने बताया है कि ईश्वर को पाने के लिए सैकड़ों क्रियाकर्म और कठिन योग साधना करना ज़रूरी नहीं है। अगर कोई भक्त उन्हें सच्ची श्रृद्धा और विश्वास के साथ याद करेगातो वो उसे एक पल में ही मिल जाएंगे।

कवि की इन पंक्तियों में ईश्वर मनुष्य से कहते हैं कि हे मनुष्य! तुम मुझे बाहर मंदिर-मस्जिदों में कहाँ ढूंढ़ते फिर रहे होमैं तो तुम्हारे पास ही हूँ! अगर तुम्हारे मन में मेरे प्रति सच्ची श्रृद्धा और विश्वास हैतो मैं हर वक़्त तुम्हारे पास मौजूद हूँ और तुम मुझे हर प्राणी की सांसों में महसूस कर सकोगे। लेकिनअगर तुम्हारे मन में सच्चाई और आस्था नहीं हैतो फिर मैं तुम्हें मंदिर-मस्ज़िद और क़ाबा-कैलाश जैसी पवित्र जगहों पर भी नहीं मिल पाउँगा। अगर मुझे पाना हैतो खुद के अंतर्मन में झांक कर देखोमैं तुम्हें वहीँ मिलूँगा!

संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनीमाया रहै न बाँधी॥
हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनीमोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरिकुबधि का भाँडाँ फूटा।।
जोग जुगति करि संतौं बाँधीनिरचू  चुवै न पाँणी।
कूड़ कपट काया का निकस्याहरि की गति जब जाँणी॥
आँधी पीछै जो जल बूठाप्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ॥


कबीर के दोहे अर्थ सहित:- कबीर दास जी ने इस पद में हमें यह शिक्षा दी है कि सांसारिक मोहमायास्वार्थधनलिप्सातृष्णाकुबुद्धि इत्यादि बुराइयाँ मनुष्य में तभी तक मौजूद रहती हैंजब तक उसे आध्यात्मिक ज्ञान नहीं होता। जैसे ही मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती हैउसके अंदर स्थित सारी सांसारिक बुराइयों और वासनाओं का अंत हो जाता है।

यहाँ कवि कहते हैं कि जब ज्ञान की आंधी आती हैतो सांसारिक भ्रम रूपी बांस की टट्टरों (छप्परों) को माया रूपी रस्सियाँ बाँध कर नहीं रख पातीं और वो ज्ञान की आंधी में तिनके की तरह उड़ जाती हैं।

सांसारिक भ्रम की छत को सहारा देने वाले स्वार्थ और लालच रूपी खम्बे भी ज्ञान की आँधी में गिर जाते हैं। इसी तरह सच्चा ज्ञानमोह रूपी सांसारिक बंधन का भी नाश कर देता है। एक-एक करके सभी सहारे हट जाने की वजह से तृष्णा-रूपी छत भी धरती पर आकर गिर गयी है और इसकी वजह से कुबुद्धि रूपी सब बर्तन भी टूट गए हैं।

इसके बाद साधु-संतो ने अपनी योग-साधना की कड़ी मेहनत से एक बहुत ही मजबूत छत का निर्माण किया हैजिसमें से अज्ञान और सांसारिक मोह-माया रूपी पानी की एक बून्द भी नहीं टपकती है। इस घर में मनुष्य के भटकने के लिए कोई राह नहीं हैयहां केवल आध्यात्म और प्रभु की भक्ति की ही एकमात्र राह है।

आगे कवि कहते हैंज्ञान की इस आंधी के बाद ईश्वर के प्रेम का मधुर जल हर मनुष्य को भिगो देता है और उनके मन के सारे मैल धुल जाते हैं। फिर जब ज्ञान रूपी सूर्य का उदय होता हैतो हमारे अंदर स्थित सारे अज्ञान के अन्धकार का अंत हो जाता है।


कबीर की साखी अर्थ सहित /Kabir Ki Sakhiyan in Hindi With Meaning Class 9कबीर की साखी अर्थ सहित /Kabir Ki Sakhiyan in Hindi With Meaning Class 9